समकालीन उर्दू शायरी में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले मज़ूर हाशमी की ग़ज़लों को भारत में ही नहीं, अपितु पाकिस्तान सहित समस्त उर्दू जगत् में बेहद सम्मान और लोकप्रियता प्राप्त है।
कभी-कभी तो वो इतनी रसाई देता है
कि सोचता है तो मुझको सुनाई देता है
जैसा लोकप्रिय शे'र कहने वाले मंजूर हाशमी मूल रूप से प्रकृति, प्रेम और सौंदर्य के शायर हैं, फिर भी उनके शे'रों में आज की सामाजिक विसंगतियों की आहट स्पष्ट सुनाई देती है। घोर निराशा के क्षणों में भी इनकी ग़ज़लें जीवन के प्रति आस्था और उम्मीद जगाती हैं।