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घर शीशे का, दिल पत्थर का : Ghar Shishe Ka, Dil Pathar Ka
घर शीशे का, दिल पत्थर का : Ghar Shishe Ka, Dil Pathar Ka

घर शीशे का, दिल पत्थर का : Ghar Shishe Ka, Dil Pathar Ka

By: Diamond Books
150.00

Single Issue

150.00

Single Issue

  • ‘व्यंग्यश्री' गिरीश पंकज की बेबाक गज़लें
  • Price : 150.00
  • Diamond Books
  • Language - Hindi

About घर शीशे का, दिल पत्थर का : Ghar Shishe Ka, Dil Pathar Ka

समकालीन वरिष्ठ ग़ज़लकारों में गिरीश पंकज भी एक जाना-पहचाना और बेहद जरूरी नाम है। गिरीश रायपुर में रहते हैं। लम्बे समय तक सक्रिय पत्रकार रहे हैं और आज भी सम-सामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं। वह केवल ग़ज़लकार नहीं हैं, व्यंग्यकार, कथाकार भी हैं। एक्टिविस्ट की तरह भी समाज में सक्रिय रहते हैं। आम तौर पर ग़ज़लकारों में विधागत विविधता नहीं मिलती है। बहुत कम ऐसे शायर हैं जिन्होंने किसी दूसरी विधा में अपनी पहचान स्थापित की है। गिरीश पंकज में यह विविधता पाई जाती है। गिरीश में धूमिल की तरह आक्रामकता है, तो त्रिलोचन जैसी भावपरकता भी है। इन ग़ज़लों से गुजरना अपने समय के खतरों से गुजरना है एवं इन ग़ज़लों की कैफियात और कहन देखकर कहा जा सकता है यदि यथार्थ ग़ज़ल का काम्य है तो गिरीश की ग़ज़लें हिन्दी सर्वाधिक यथार्थवादी ग़ज़लें हैं। इस यथार्थ का काम्य महज शल्य-क्रिया नहीं है अपितु सपनों के लिए बगावती तेवरों का आगाज भी है। गिरीश पंकज की ग़ज़लों से आज के हिन्दुस्तान का बिम्ब निर्मित होता है। एक ऐसा हिन्दुस्तान जहाँ राजनीति ही मनुष्य की परिभाषा तय कर रही है। और राजनीति ही मुद्दे तय कर रही है। राजनीति ने जम्हूरियत को कुछ वर्गों की मुट्ठी में कैद कर दिया है। इससे जम्हूरियत में विकृतियाँ पैदा हो गयी हैं। इन विकृतियों का प्रतिरोध ही गिरीश की ग़ज़लों का प्रतिपाद्य है। गिरीश पंकज अपनी ग़ज़लों में तहज़ीबी मकसदों को छू लेने की कोशिश करते हैं और भाषा के नर्म व गर्म तेवरों से ज़िंदगी और व्यवस्था के तमाम रहस्य खोलते हैं लेकिन इस नर्म और गर्म तेवर का मक़सद है, एक ऐसा समाज जहाँ समरसता और प्रेम आबाद हो, विश्वास, समरसता और प्रेम कायम हो। गिरीश पंकज ने अपनी गज़लों में समय को बड़ी शिद्दत के साथ पिरोया है। गिरीश पंकज की शायरी इस परम्परा का समकालीन विकास है इसीलिए गिरीश की शायरी में हमारी मुठभेड़ बार-बार राजनीति से होती है। समय और परिदृश्य के प्रति तथ्यपरक होना बहुत कम ग़ज़लकारों में पाया जाता है। ग़ज़ल का व्याकरण ऐसा होता है कि उसमें तथ्यों की वैसी बुनावट नहीं हो सकती, जैसी बुनावट कविता में होती है लेकिन गिरीश ने इस जड़ता को तोड़ा है। वह तथ्य और तर्क के साथ समय का विध्वंसक बिम्ब देने के लिए हिन्दी ग़ज़ल के इतिहास में हमेशा याद किए जाएँगे।