एक छोटी सी पुस्तक गद्य रूप में अवतरित हुई है जिसमें मिथिलांचल के रीति रिवाजों एवं उनमें व्याप्त संगतियों- विसंगतियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। सन् 1967 में भारत सरकार के केन्द्रीय गुप्तचर विभाग में नियुक्ति के उपरान्त देश के विभिन्न प्रांतों से भरे अपने विभाग के लोगों से सम्पर्क के क्रम में मैंने पाया कि मिथिला की जानकारी उन्हें या तो बिल्कुल नहीं है या है भी तो अल्प है। उसी समय से मेरी चाहत देश के लोगों को मिथिला के बारे में बताने हेतु मुझे प्रेरित करती रही। इसके अतिरिक्त अपने मैथिल भाइयों को यहाँ की संगतियों (अच्छाइयों) के स्वच्छ दर्पण को सदैव यथावत रखने और विसंगतियों (बुराइयों) के धूल-घन से आच्छादित दर्पण को निर्मल बनाने हेतु उत्प्रेरित करने की चाहत भी उत्पन्न हुई। इन्हीं चाहतों के परिणामस्वरूप ‘‘एक माटी-दो अध्याय’’ पुस्तक रूप में अवतरित हुई।