logo

Get Latest Updates

Stay updated with our instant notification.

logo
logo
account_circle Login
SHRI RAM VIVAH
SHRI RAM VIVAH

About this issue

श्रीराम विवाह पावन परिणय ग्रंथ सहज संक्षिप्त काव्यमय गागर में समृद्ध सुन्दर भावमय सागर है जिसे अवलोकन कर प्रथम दृष्टया मैं मंत्रमुग्ध हो गया। जनमानस में व्याप्त भावना 'जो शंभु का धनुष तोड़ेगा, सीता से नाता जोड़ेगा' को सुधारते हुए महाकवि मनीषी संत श्री हनुमानदास 'हिमकर' ने मिथिलेश सीरध्वज जनक के मागध को घोषणा करते सुना है -
"शिवपिनाक जेहि सुभट उठाइहि, धनु पर प्रत्यंचा फहराइहि सोई वीरोत्तम श्रीपति होऊ, किम्बा सिया कुँआरि रहेऊ ।।"
अन्य रामायणों से भिन्न 'श्रीराम विवाह' भाव पुष्पहार में प्रचलित विचार 'राबन बान छुए नहि चापा, हारे सकल भूप करि दापा' की सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत है -
"शिवपिनाक जग्यांगन पावन, बहुल देस तें भूप सुहावन विदर्भ केकय उत्कल कांची, मथुरा माहिष्मती अवन्ती प्राग्ज्योतिषपुर कासीराजा, अंग बंग नृप कुँअर समाजा" शिवसेवक दोउ सुभट पधारे, घनुहि नमन करि भवनसिधारे
जिन विविध राज्यों में राजे-महाराज धनुषयज्ञ में पधारे थे उन देश-राज्यों के नाम सौभाग्य वश हमें इस सदा सेव्यं प्रणय-ग्रंथम् से ही पाप होते हैं।
किशोरी जानकी जू की सुमुखि सहेलियों के नाम पाठकगण तभी जान लेते हैं जब वे वैदेही के कल्याणार्थ भगवती गिरिजाजी की वन्दना करती हैं :-
'भवांगनाभवप्रिया भवानी, भवभयभंजनि सदा शिवानी जया जगद्धात्री जगदम्बा पुरबहुँ सिया मनोरथ अम्बा नाम हमार सुनहु जगजननी, मंगलकरनि अमंगलहरनी
'शुभ्रा श्वेता ज्योत्स्ना जाया, चन्द्र किरण चार्वंगी माथा
सुधा साधना कीर्ति कामिनी, कृष्णा करुणा मंजु मानिनी।
प्रियम्बदा पूर्णिमा पुनीता, स्वर्णाक्षी शारदा सुनीता

About SHRI RAM VIVAH

श्रीराम विवाह पावन परिणय ग्रंथ सहज संक्षिप्त काव्यमय गागर में समृद्ध सुन्दर भावमय सागर है जिसे अवलोकन कर प्रथम दृष्टया मैं मंत्रमुग्ध हो गया। जनमानस में व्याप्त भावना 'जो शंभु का धनुष तोड़ेगा, सीता से नाता जोड़ेगा' को सुधारते हुए महाकवि मनीषी संत श्री हनुमानदास 'हिमकर' ने मिथिलेश सीरध्वज जनक के मागध को घोषणा करते सुना है -
"शिवपिनाक जेहि सुभट उठाइहि, धनु पर प्रत्यंचा फहराइहि सोई वीरोत्तम श्रीपति होऊ, किम्बा सिया कुँआरि रहेऊ ।।"
अन्य रामायणों से भिन्न 'श्रीराम विवाह' भाव पुष्पहार में प्रचलित विचार 'राबन बान छुए नहि चापा, हारे सकल भूप करि दापा' की सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत है -
"शिवपिनाक जग्यांगन पावन, बहुल देस तें भूप सुहावन विदर्भ केकय उत्कल कांची, मथुरा माहिष्मती अवन्ती प्राग्ज्योतिषपुर कासीराजा, अंग बंग नृप कुँअर समाजा" शिवसेवक दोउ सुभट पधारे, घनुहि नमन करि भवनसिधारे
जिन विविध राज्यों में राजे-महाराज धनुषयज्ञ में पधारे थे उन देश-राज्यों के नाम सौभाग्य वश हमें इस सदा सेव्यं प्रणय-ग्रंथम् से ही पाप होते हैं।
किशोरी जानकी जू की सुमुखि सहेलियों के नाम पाठकगण तभी जान लेते हैं जब वे वैदेही के कल्याणार्थ भगवती गिरिजाजी की वन्दना करती हैं :-
'भवांगनाभवप्रिया भवानी, भवभयभंजनि सदा शिवानी जया जगद्धात्री जगदम्बा पुरबहुँ सिया मनोरथ अम्बा नाम हमार सुनहु जगजननी, मंगलकरनि अमंगलहरनी
'शुभ्रा श्वेता ज्योत्स्ना जाया, चन्द्र किरण चार्वंगी माथा
सुधा साधना कीर्ति कामिनी, कृष्णा करुणा मंजु मानिनी।
प्रियम्बदा पूर्णिमा पुनीता, स्वर्णाक्षी शारदा सुनीता