logo

Get Latest Updates

Stay updated with our instant notification.

logo
logo
account_circle Login
Savi ki Chavi
Savi ki Chavi

About this issue

आज मैं अपनी नवमल्लिका 'सवि की छवि' को उषा की लालिमा में शब्दों रूपी ओस की बूंदों को, पन्नों रूपी पत्तों पर चमकते हुए देख रही हूं। पक्षियों के कलरव सा, मन्द-मन्द ब्यार सा सुगन्धित मन्त्रमुग्ध मेरा मन, प्रसन्नता के सिन्धु में, अविरल धारा में प्रवाहित होता सा, आज मुझे गौरवान्तित कर रहा है। यह आलौकिक क्षण, गहराइयों में छाई भावों की अभिव्यक्तियों का प्रस्तुतिकरण 'सवि की छवि' के रूप में सूर्य के प्रकाश से चमचमा कर मोतियों की लड़ियां बन जाएँ ।
उस रचियता प्रभु को नमन एवं धन्यवाद, जिन्होंने मेरे भावों से समस्वर अंतस को उद्वेलित कर, एक काव्य का रूप देने को प्रेरित किया। बचपन से कविताएँ लिखने का शौक, समय-समय पर लिख कर मंचित करना, जैसे रोम-रोम में समाया हुआ था। बढ़ते हुए जीवन में उत्तरदायित्व और परिस्थितियों वश समय-समय पर नारी जीवन में परिवर्तन आना स्वाभाविक है और वह नारी ही है जो सुखद दुखद संघर्ष रूपी नदि को धैर्यरूपी सेतू का निर्माण कर सहर्ष पार उतरती है। ऐसे ही सुखद-दुखद परिस्थितियों को निहित रखते हुए, अपनी लेखनी को सदा अनवरत रखा। भविष्य में भी कविता रूपी ओस की बूंदों को नदिया का रूप धारण कर कल-कल बहते रहने की महत्त्वाकांक्षा बनी रहे।
मेरा सौभाग्य है कि कुछ सीमित सूत्रों को ही कविताओं में बांध कर, भिन्न-भिन्न प्रकार के विषयों पर और अभ्यासों पर आधारित कविताओं का अनुबोधन किया है।

About Savi ki Chavi

आज मैं अपनी नवमल्लिका 'सवि की छवि' को उषा की लालिमा में शब्दों रूपी ओस की बूंदों को, पन्नों रूपी पत्तों पर चमकते हुए देख रही हूं। पक्षियों के कलरव सा, मन्द-मन्द ब्यार सा सुगन्धित मन्त्रमुग्ध मेरा मन, प्रसन्नता के सिन्धु में, अविरल धारा में प्रवाहित होता सा, आज मुझे गौरवान्तित कर रहा है। यह आलौकिक क्षण, गहराइयों में छाई भावों की अभिव्यक्तियों का प्रस्तुतिकरण 'सवि की छवि' के रूप में सूर्य के प्रकाश से चमचमा कर मोतियों की लड़ियां बन जाएँ ।
उस रचियता प्रभु को नमन एवं धन्यवाद, जिन्होंने मेरे भावों से समस्वर अंतस को उद्वेलित कर, एक काव्य का रूप देने को प्रेरित किया। बचपन से कविताएँ लिखने का शौक, समय-समय पर लिख कर मंचित करना, जैसे रोम-रोम में समाया हुआ था। बढ़ते हुए जीवन में उत्तरदायित्व और परिस्थितियों वश समय-समय पर नारी जीवन में परिवर्तन आना स्वाभाविक है और वह नारी ही है जो सुखद दुखद संघर्ष रूपी नदि को धैर्यरूपी सेतू का निर्माण कर सहर्ष पार उतरती है। ऐसे ही सुखद-दुखद परिस्थितियों को निहित रखते हुए, अपनी लेखनी को सदा अनवरत रखा। भविष्य में भी कविता रूपी ओस की बूंदों को नदिया का रूप धारण कर कल-कल बहते रहने की महत्त्वाकांक्षा बनी रहे।
मेरा सौभाग्य है कि कुछ सीमित सूत्रों को ही कविताओं में बांध कर, भिन्न-भिन्न प्रकार के विषयों पर और अभ्यासों पर आधारित कविताओं का अनुबोधन किया है।