जो व्यक्ति कल्पनाओं के संसार में विचरण करते रहते हैं वे वास्तविकता से इतनी दूर चले जाते है कि वास्तविकता उन्हें तुच्छ लगने लगती है।
कल्पनाओं के संसार में व्यस्त रहने वाले व्यक्ति अपनी वास्तविक
कल्पना शक्ति को भ्रमित कर लेते हैं। यह कल्पना शक्ति वास्तविक जगत से
इतनी दूर कर देती है कि वे दीर्घसूत्री हो जाते हैं। यह कल्पना शक्ति व्यक्ति के
जीवन के मार्गों को अवरुद्ध कर देती है क्योंकि इससे वास्तविकता इतनी दूर
होती है कि जिसके पास पहुँचना बहुत ही कठिन नहीं, वरन् दुर्लभ हो जाता है
परिणामतः वे दीर्घसूत्री, कल्पनाओं के प्रवाह में इतनी तीव्र गति से बहते है कि
उन्हें कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता ।
वास्तविक जगत में स्वस्थ व्यक्ति, मानसिक स्वस्थ व्यक्ति ही विचरण करते हैं। वे कर्तव्यों, अकर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए, दीर्घसूत्र का त्याग करके, करने योग्य कर्म को ही करते हैं जिसके प्रभाव से सफलता के शिखर तक पहुँचते है।
किसी कार्य को करते रहने से जो शिखर प्राप्त किया जा सकता है। वह शिखर उस कार्य करने की शक्ति होने पर भी, कल्पनाओं से ओत-प्रोत व्यक्ति यह सोच कर नहीं करता कि यह कार्य तो हम कर ही लेंगे, नहीं प्राप्त किया जा सकता। अतः उससे शौर्य बहुत दूर होता है जिसे वे अपने पास समझते है।
वास्तविक जगत में विचरण करने वाला व्यक्ति, महापुरुषों द्वारा प्रदत्त किये गये प्रकाश में शौर्य को प्राप्त करके उसका प्रतीक बन जाता है।
जो व्यक्ति कल्पनाओं के संसार में विचरण करते रहते हैं वे वास्तविकता से इतनी दूर चले जाते है कि वास्तविकता उन्हें तुच्छ लगने लगती है।
कल्पनाओं के संसार में व्यस्त रहने वाले व्यक्ति अपनी वास्तविक
कल्पना शक्ति को भ्रमित कर लेते हैं। यह कल्पना शक्ति वास्तविक जगत से
इतनी दूर कर देती है कि वे दीर्घसूत्री हो जाते हैं। यह कल्पना शक्ति व्यक्ति के
जीवन के मार्गों को अवरुद्ध कर देती है क्योंकि इससे वास्तविकता इतनी दूर
होती है कि जिसके पास पहुँचना बहुत ही कठिन नहीं, वरन् दुर्लभ हो जाता है
परिणामतः वे दीर्घसूत्री, कल्पनाओं के प्रवाह में इतनी तीव्र गति से बहते है कि
उन्हें कुछ भी करना अच्छा नहीं लगता ।
वास्तविक जगत में स्वस्थ व्यक्ति, मानसिक स्वस्थ व्यक्ति ही विचरण करते हैं। वे कर्तव्यों, अकर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए, दीर्घसूत्र का त्याग करके, करने योग्य कर्म को ही करते हैं जिसके प्रभाव से सफलता के शिखर तक पहुँचते है।
किसी कार्य को करते रहने से जो शिखर प्राप्त किया जा सकता है। वह शिखर उस कार्य करने की शक्ति होने पर भी, कल्पनाओं से ओत-प्रोत व्यक्ति यह सोच कर नहीं करता कि यह कार्य तो हम कर ही लेंगे, नहीं प्राप्त किया जा सकता। अतः उससे शौर्य बहुत दूर होता है जिसे वे अपने पास समझते है।
वास्तविक जगत में विचरण करने वाला व्यक्ति, महापुरुषों द्वारा प्रदत्त किये गये प्रकाश में शौर्य को प्राप्त करके उसका प्रतीक बन जाता है।