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Mukhota
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About this issue

कुछ लोगों के लिए झूठ बोलना बहुत आसान होता है और कुछ लोगों के लिए मुश्किल । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डर के कारण सच के साथ हैं और जब डर चला जाता है तब झूठ बोलने में कोई असुविधा नहीं होती । संसार में झूठ बोलना सबकी मजबूरी बन गयी है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता और एक वक्त के बाद झूठ सहज लगने लगता है। 'झूठ बोलना पाप है', बचपन में ये बात सब सीखते हैं और अक्सर छोटी उम्र के बच्चे 'सच' के साथ चलते हैं और झूठ से बचने की कोशिश करते हैं। लेकिन बचपन की दहलीज़ को लांघते ही एक परिवर्तन आ जाता है। बड़ों की देखा-देखी और अपनी कुछ ज़रूरतों को पूरा करने की चाहत की वजह से बच्चा झूठ बोलने की ट्रेनिंग हासिल कर लेता है। फिर बड़ा होते-होते, चालाक, होशियार और स्ट्रीट- स्मार्ट बनते-बनते उसे झूठ बोलने की आदत पड़ जाती है और फिर ये आदत उसके पूरे मन-मस्तिष्क का हिस्सा बन जाती है। कई बार अनेक वजहों से, अच्छे और सच्चे लोगों को भी झूठ का सहारा लेना पड़ता है। ज़िद्दी बच्चों को समझाने और मनाने के लिए माता-पिता होशियारी से झूठ का सहारा लेते हैं जो ज़रूरी होता है। कई बार सीधे सादे लोगों को उनके भले की बात समझाने में झूठ की ज़रूरत पड़ती है। सच्चे गुरु को भी झूठ की मदद से साधारण जनमानस को धर्म की राह पर लाने के लिए परिश्रम करना पड़ता है।

About Mukhota

कुछ लोगों के लिए झूठ बोलना बहुत आसान होता है और कुछ लोगों के लिए मुश्किल । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डर के कारण सच के साथ हैं और जब डर चला जाता है तब झूठ बोलने में कोई असुविधा नहीं होती । संसार में झूठ बोलना सबकी मजबूरी बन गयी है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता और एक वक्त के बाद झूठ सहज लगने लगता है। 'झूठ बोलना पाप है', बचपन में ये बात सब सीखते हैं और अक्सर छोटी उम्र के बच्चे 'सच' के साथ चलते हैं और झूठ से बचने की कोशिश करते हैं। लेकिन बचपन की दहलीज़ को लांघते ही एक परिवर्तन आ जाता है। बड़ों की देखा-देखी और अपनी कुछ ज़रूरतों को पूरा करने की चाहत की वजह से बच्चा झूठ बोलने की ट्रेनिंग हासिल कर लेता है। फिर बड़ा होते-होते, चालाक, होशियार और स्ट्रीट- स्मार्ट बनते-बनते उसे झूठ बोलने की आदत पड़ जाती है और फिर ये आदत उसके पूरे मन-मस्तिष्क का हिस्सा बन जाती है। कई बार अनेक वजहों से, अच्छे और सच्चे लोगों को भी झूठ का सहारा लेना पड़ता है। ज़िद्दी बच्चों को समझाने और मनाने के लिए माता-पिता होशियारी से झूठ का सहारा लेते हैं जो ज़रूरी होता है। कई बार सीधे सादे लोगों को उनके भले की बात समझाने में झूठ की ज़रूरत पड़ती है। सच्चे गुरु को भी झूठ की मदद से साधारण जनमानस को धर्म की राह पर लाने के लिए परिश्रम करना पड़ता है।