कहते हैं भगवान ने सबको जन्म दिया है, किन्तु किसी ने उसे जन्म देते देखा नहीं है। ये विश्वास का विषय है। ये भी कहा जाता है कि ईश्वर ही सबको भोजन देता है, इसे भी किसी ने देखा नहीं है। ये भी आस्था व श्रद्धा का विषय है, किन्तु मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया है इसे सबने देखा है। मेरी माँ ने मुझे अपने रक्त से बने एक-एक बूँद दूध से मुझे जीवन दिया है, इसे भी सबने देखा है। दुनिया की सबसे भयानक पीड़ा-प्रसव पीड़ा होती है जिसे सिर्फ माँ ही बर्दाश्त करती है।
तो फिर ये तो मानना ही पड़ेगा कि सृष्टि में माँ से बड़ा कुछ भी नहीं होता है, भगवान भी नहीं। ईश्वर को भी जब धरती पर आना होता है तो वह भी किसी माँ की कोख का ही सहारा लेता है। माँ ही सबसे पूज्यनीय है, चाहे वो जन्म देने वाली माँ हो, धरती माता हो या भारत माता। माँ के चरणों में सर्वस्व हँस-हँसकर न्यौछावर करने वाले ही असली देवता होते हैं। प्राणदान से बड़ा कोई त्याग नहीं होता है। राष्ट्र और मानवता के चरणों में अपने शीशों के फूल चढ़ाने वालों की शौर्य गाथायें ही असली पुराण हैं। देश के अमर शहीद चाहते तो जीवन में सारे सुख, वैभव पा सकते थे, किन्तु उन्होंने बगैर किसी प्रलोभन व स्वार्थ के अपने प्राणों की आहुति दे दी ताकि अपने राष्ट्र का
भविष्य उज्ज्वल व सुखमय रहे।
कहते हैं भगवान ने सबको जन्म दिया है, किन्तु किसी ने उसे जन्म देते देखा नहीं है। ये विश्वास का विषय है। ये भी कहा जाता है कि ईश्वर ही सबको भोजन देता है, इसे भी किसी ने देखा नहीं है। ये भी आस्था व श्रद्धा का विषय है, किन्तु मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया है इसे सबने देखा है। मेरी माँ ने मुझे अपने रक्त से बने एक-एक बूँद दूध से मुझे जीवन दिया है, इसे भी सबने देखा है। दुनिया की सबसे भयानक पीड़ा-प्रसव पीड़ा होती है जिसे सिर्फ माँ ही बर्दाश्त करती है।
तो फिर ये तो मानना ही पड़ेगा कि सृष्टि में माँ से बड़ा कुछ भी नहीं होता है, भगवान भी नहीं। ईश्वर को भी जब धरती पर आना होता है तो वह भी किसी माँ की कोख का ही सहारा लेता है। माँ ही सबसे पूज्यनीय है, चाहे वो जन्म देने वाली माँ हो, धरती माता हो या भारत माता। माँ के चरणों में सर्वस्व हँस-हँसकर न्यौछावर करने वाले ही असली देवता होते हैं। प्राणदान से बड़ा कोई त्याग नहीं होता है। राष्ट्र और मानवता के चरणों में अपने शीशों के फूल चढ़ाने वालों की शौर्य गाथायें ही असली पुराण हैं। देश के अमर शहीद चाहते तो जीवन में सारे सुख, वैभव पा सकते थे, किन्तु उन्होंने बगैर किसी प्रलोभन व स्वार्थ के अपने प्राणों की आहुति दे दी ताकि अपने राष्ट्र का
भविष्य उज्ज्वल व सुखमय रहे।