काव्य पर आधारित राष्ट्रीय काव्य संकलन 'काव्य सुगन्ध' की सफलतापूर्वक तीन कृतियां (भाग-1, 2 एवं 3) प्रकाशित करने के उपरान्त नया अंक, नये नाम से प्रकाशित करने का मन हुआ। संपादक मंडल से सहमति के पश्चात 'काव्य कलश' नाम चयन किया गया। 'कलश' मन्दिर में, मनमोहन शर्मा 'शरण' पूजा में, आध्यात्मिक अनुष्ठानों में सदैव प्रधान संपादक स्थापित किया जाता है। पवित्र जल का उसमें संग्रह किया जाता है। कितना सही भाव उभर कर सामने आया। विभिन्न प्रदेशों से 87 कवियों ने पवित्र भावना से काव्य कलश में काव्य रूपी जल का प्रवेश कराया। काव्य में कविता-गीत-ग़ज़ल-हाइकु इत्यादि सभी समाहित हैं। काव्य पर केन्द्रित तीन तथा लघुकथा-कहानी विशेषांक 'सृजन सागर' भाग-1 एवं भाग-2 के बाद भाग-3 प्रकाशनाधीन है।
'काव्य कलश' के प्रथम अंक में यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक सहभागी रचनाकार की एक रचना सम्मिलित की जाए। कुछ रचनाकारों ने एक से अधिक प्रविष्ठि ली है जिसके परिणामस्वरूप उनकी एक से अधिक रचना प्रकाशित की गई हैं।
सर्वप्रथम मैं अपने सम्पादक मंडल के सदस्यों (श्री मनमोहन सिंह भाटिया, श्री कुशलेन्द्र श्रीवास्तव, श्री सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य', नीलू नीलपरी, डॉ. कुमार जैमिनि शास्त्री) का धन्यवाद करता हूँ जिनके सतत् प्रयासों से 'काव्य कलश' का यह अंक अपने स्वरूप को पा सका है।
काव्य पर आधारित राष्ट्रीय काव्य संकलन 'काव्य सुगन्ध' की सफलतापूर्वक तीन कृतियां (भाग-1, 2 एवं 3) प्रकाशित करने के उपरान्त नया अंक, नये नाम से प्रकाशित करने का मन हुआ। संपादक मंडल से सहमति के पश्चात 'काव्य कलश' नाम चयन किया गया। 'कलश' मन्दिर में, मनमोहन शर्मा 'शरण' पूजा में, आध्यात्मिक अनुष्ठानों में सदैव प्रधान संपादक स्थापित किया जाता है। पवित्र जल का उसमें संग्रह किया जाता है। कितना सही भाव उभर कर सामने आया। विभिन्न प्रदेशों से 87 कवियों ने पवित्र भावना से काव्य कलश में काव्य रूपी जल का प्रवेश कराया। काव्य में कविता-गीत-ग़ज़ल-हाइकु इत्यादि सभी समाहित हैं। काव्य पर केन्द्रित तीन तथा लघुकथा-कहानी विशेषांक 'सृजन सागर' भाग-1 एवं भाग-2 के बाद भाग-3 प्रकाशनाधीन है।
'काव्य कलश' के प्रथम अंक में यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक सहभागी रचनाकार की एक रचना सम्मिलित की जाए। कुछ रचनाकारों ने एक से अधिक प्रविष्ठि ली है जिसके परिणामस्वरूप उनकी एक से अधिक रचना प्रकाशित की गई हैं।
सर्वप्रथम मैं अपने सम्पादक मंडल के सदस्यों (श्री मनमोहन सिंह भाटिया, श्री कुशलेन्द्र श्रीवास्तव, श्री सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य', नीलू नीलपरी, डॉ. कुमार जैमिनि शास्त्री) का धन्यवाद करता हूँ जिनके सतत् प्रयासों से 'काव्य कलश' का यह अंक अपने स्वरूप को पा सका है।