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JAB MAENIE WIFE KA MURDER KIYA जब मैंने 'Wife' का 'MURDER' कियां...
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JAB MAENIE WIFE KA MURDER KIYA जब मैंने 'Wife' का 'MURDER' कियां...

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
113.00

Single Issue

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About this issue

आखिर क्यों पढ़ें ये पुस्तक ?
आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और भोजपुरी के मर्मज्ञ विद्वान रहे हैं और उनके लेखन में यदा-कदा उर्दू का भी पुट देखा जा सकता है। उनके जीवन का अनुभव बड़ा व्यापक और विशाल रहा है तथा उनकी चिंतनशीलता गहन-गंभीर। यही कारण है कि उनके निबंधों में जीवन के इंद्रधनुषी भाव-भंगिमाएं, छवि-छटाएं, रस-रंग प्राप्त होते हैं। इनकी दृष्टि मूलतः मौलिक और समग्रतः मानवीय है इसलिए इनके निबंधों में एक खास तरह का उदात्तशील संस्कार प्राप्त होता है जो मानव जीवन को परमोत्कर्ष, परम श्रेयस की ओर प्रेरित करता है।
इस पुस्तक में आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के दस ललित निबंधों को शामिल किया गया है। दसों निबंध अपने आप में विशिष्ट हैं, अपने आप में उत्कृष्ट हैं। कुछ निबंध अध्यात्मपरक हैं, तो कुछ व्यक्ति परक, कुछ संस्मरणात्मक तो कुछ यात्रापरक । पर इस पुस्तक के नाम ने आपको अवश्य चौंका दिया होगा। ऐसा भी कहीं नाम होता है पुस्तक का? और यही नहीं, रचनाकार ने एक ही निबंध के लिए दो शीर्षक दिया है। भला ऐसा भी कहीं होता है?

About JAB MAENIE WIFE KA MURDER KIYA जब मैंने 'Wife' का 'MURDER' कियां...

आखिर क्यों पढ़ें ये पुस्तक ?
आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और भोजपुरी के मर्मज्ञ विद्वान रहे हैं और उनके लेखन में यदा-कदा उर्दू का भी पुट देखा जा सकता है। उनके जीवन का अनुभव बड़ा व्यापक और विशाल रहा है तथा उनकी चिंतनशीलता गहन-गंभीर। यही कारण है कि उनके निबंधों में जीवन के इंद्रधनुषी भाव-भंगिमाएं, छवि-छटाएं, रस-रंग प्राप्त होते हैं। इनकी दृष्टि मूलतः मौलिक और समग्रतः मानवीय है इसलिए इनके निबंधों में एक खास तरह का उदात्तशील संस्कार प्राप्त होता है जो मानव जीवन को परमोत्कर्ष, परम श्रेयस की ओर प्रेरित करता है।
इस पुस्तक में आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा के दस ललित निबंधों को शामिल किया गया है। दसों निबंध अपने आप में विशिष्ट हैं, अपने आप में उत्कृष्ट हैं। कुछ निबंध अध्यात्मपरक हैं, तो कुछ व्यक्ति परक, कुछ संस्मरणात्मक तो कुछ यात्रापरक । पर इस पुस्तक के नाम ने आपको अवश्य चौंका दिया होगा। ऐसा भी कहीं नाम होता है पुस्तक का? और यही नहीं, रचनाकार ने एक ही निबंध के लिए दो शीर्षक दिया है। भला ऐसा भी कहीं होता है?