logo

Get Latest Updates

Stay updated with our instant notification.

logo
logo
account_circle Login
Gaam Nahi Jayab
Gaam Nahi Jayab

About this issue

कहल जायत अछि साहित्य समाजक दर्पण थिक। एहि उपन्यासक निर्माणकाल मे हम उक्त कथन केऽ अक्षरशः सत्य अनुभव कयलहुँ। मैथिल समाज मे व्याप्त कुरीति, स्वार्थ, ईर्ष्या, आपसी फूट आओर खास कऽ अंधविश्वास कोढ़ बनि चुकल अछि। समाजक निम्न स्तरक' व्यक्ति' संगहि एहि चक्रव्यूह में पढ़ल-लिखल एवं उच्च वर्गक व्यक्ति सेहो फंसि जायत छथि । जोग-टोन, झाड़-फूँक, डायन-जोगिन केर अस्तित्व पर विश्वास-अंधविश्वास एक अवांछनीय सत्य अछि। एकर सत्यता केर अन्वेषण पाठक पर छोड़ि रहल छी, मुदा एकर कुप्रभावक एहसास, वर्त्तमान उपन्यास अवश्य कराओत ।
समाज मध्य व्याप्त कुरीति, कुप्रथा पर व्यंगात्मक कुठाराघात करि संदेश देब कालजयी उपन्यास "कन्यादान" सिखाबैत अछि। "गाम नहि जायब" एहि कड़ी मे एक प्रयास थिक, से तऽ असंभव, मुदा "कन्यादान" आ स्व. हरिमोहन झा केर प्रति श्रद्धांजलि अवश्य सिद्ध होयत । पारिवारिक एकता वर्त्तमान समाज मे प्रतिक्षण खंडित भऽ रहल अछि । ऐशोआरामक जिंदगी बिताबऽ हेतु लोक क्षुद्रता केर पराकाष्ठा तक जा रहल छथि। तखन प्रश्न उठैत अछि - "कि बिना स्वार्थ ओ ईर्ष्या केर व्यक्ति आगाँ बढ़ि सम्मानित जीवन,
आजुक समाज मे नहि बिता सकैत अछि" ? एहि तरहक संदर्भित प्रश्नक हल ताकि रहल अछि "गाम नहि जायब"।
अहां के एहि सारगर्भित प्रश्नक उत्तर ताकऽ मे अगर प्रस्तुत उपन्यास सहायक सिद्ध भेल तऽ हमर प्रयास सार्थक होयत ।

About Gaam Nahi Jayab

कहल जायत अछि साहित्य समाजक दर्पण थिक। एहि उपन्यासक निर्माणकाल मे हम उक्त कथन केऽ अक्षरशः सत्य अनुभव कयलहुँ। मैथिल समाज मे व्याप्त कुरीति, स्वार्थ, ईर्ष्या, आपसी फूट आओर खास कऽ अंधविश्वास कोढ़ बनि चुकल अछि। समाजक निम्न स्तरक' व्यक्ति' संगहि एहि चक्रव्यूह में पढ़ल-लिखल एवं उच्च वर्गक व्यक्ति सेहो फंसि जायत छथि । जोग-टोन, झाड़-फूँक, डायन-जोगिन केर अस्तित्व पर विश्वास-अंधविश्वास एक अवांछनीय सत्य अछि। एकर सत्यता केर अन्वेषण पाठक पर छोड़ि रहल छी, मुदा एकर कुप्रभावक एहसास, वर्त्तमान उपन्यास अवश्य कराओत ।
समाज मध्य व्याप्त कुरीति, कुप्रथा पर व्यंगात्मक कुठाराघात करि संदेश देब कालजयी उपन्यास "कन्यादान" सिखाबैत अछि। "गाम नहि जायब" एहि कड़ी मे एक प्रयास थिक, से तऽ असंभव, मुदा "कन्यादान" आ स्व. हरिमोहन झा केर प्रति श्रद्धांजलि अवश्य सिद्ध होयत । पारिवारिक एकता वर्त्तमान समाज मे प्रतिक्षण खंडित भऽ रहल अछि । ऐशोआरामक जिंदगी बिताबऽ हेतु लोक क्षुद्रता केर पराकाष्ठा तक जा रहल छथि। तखन प्रश्न उठैत अछि - "कि बिना स्वार्थ ओ ईर्ष्या केर व्यक्ति आगाँ बढ़ि सम्मानित जीवन,
आजुक समाज मे नहि बिता सकैत अछि" ? एहि तरहक संदर्भित प्रश्नक हल ताकि रहल अछि "गाम नहि जायब"।
अहां के एहि सारगर्भित प्रश्नक उत्तर ताकऽ मे अगर प्रस्तुत उपन्यास सहायक सिद्ध भेल तऽ हमर प्रयास सार्थक होयत ।