'काव्य संग्रह' का प्रथम पुष्प मैं अपने प्रातः स्मरणीय स्व. माँ और बाबूजी के चरणों म अर्पित करता हूँ, जिनके अस्तित्व का मुस्कुराता प्रतिरूप मेरी चेतना और अन्तर्प्रज्ञा है। परिवार के सभी सदस्यों तथा विशेषकर पत्नी के स्नेहिल-सहयोग एवं प्रेरणा का मैं आजीवन आभारी रहूँगा। इसके साथ ही सभी परिजनों, मित्रों एवं सहयोगियों म से खास कर डा. सुरेन्द्र प्र. सिंह जी के प्रति भी हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने सदैव कुछ लिखने के लिए मुझे प्रोत्साहित एवं प्रेरित किया है। मेरी अनुभूतियों के अनवरत शाब्दिक प्रवाह को पुस्तक का रूप दिलाने म मेरे प्रिय दामाद, श्री धर्मेन्द्र कुमार जी, का अद्भुत योगदान रहा है, इसके लिए उन्ह बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद ।
मैंने अपने अंदर उमड़ती कड़वी एवं मीठी भावनाओं के फूल को 'मन की बात' के कोमल धागे म पिरोकर जो पुष्पमाल बनाया है, उसम बाह्य एवं आंतरिक परिवेश म होने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक उथल-पुथल की अनुभूतियों की सुगंध और सौन्दर्य की झलक देखने को अवश्य मिलेगी। समाज म जो कटु सत्य मैंने देखा, सुना, परखा और अनुभव किया; उसे ही कविता के रूप म अपने परिमित ज्ञान की परिधि म रखते हुए यथासंभव उजागर करने का प्रयास किया। सत्य की व्याख्या ही तो साहित्य का सही आकलन होता है। अंत म प्रकाशन के मेरुदंड श्री मनमोहन शर्मा जी के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने अल्पकाल म इस पुस्तक को प्रकाशित कराया। आशा है कि 'मन की बात' को सुधी पाठकों का स्नेह और सहयोग निरंतर मिलता रहेगा।
अनन्त शुभकामनाओं के साथ आपका ही -
'काव्य संग्रह' का प्रथम पुष्प मैं अपने प्रातः स्मरणीय स्व. माँ और बाबूजी के चरणों म अर्पित करता हूँ, जिनके अस्तित्व का मुस्कुराता प्रतिरूप मेरी चेतना और अन्तर्प्रज्ञा है। परिवार के सभी सदस्यों तथा विशेषकर पत्नी के स्नेहिल-सहयोग एवं प्रेरणा का मैं आजीवन आभारी रहूँगा। इसके साथ ही सभी परिजनों, मित्रों एवं सहयोगियों म से खास कर डा. सुरेन्द्र प्र. सिंह जी के प्रति भी हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने सदैव कुछ लिखने के लिए मुझे प्रोत्साहित एवं प्रेरित किया है। मेरी अनुभूतियों के अनवरत शाब्दिक प्रवाह को पुस्तक का रूप दिलाने म मेरे प्रिय दामाद, श्री धर्मेन्द्र कुमार जी, का अद्भुत योगदान रहा है, इसके लिए उन्ह बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद ।
मैंने अपने अंदर उमड़ती कड़वी एवं मीठी भावनाओं के फूल को 'मन की बात' के कोमल धागे म पिरोकर जो पुष्पमाल बनाया है, उसम बाह्य एवं आंतरिक परिवेश म होने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक उथल-पुथल की अनुभूतियों की सुगंध और सौन्दर्य की झलक देखने को अवश्य मिलेगी। समाज म जो कटु सत्य मैंने देखा, सुना, परखा और अनुभव किया; उसे ही कविता के रूप म अपने परिमित ज्ञान की परिधि म रखते हुए यथासंभव उजागर करने का प्रयास किया। सत्य की व्याख्या ही तो साहित्य का सही आकलन होता है। अंत म प्रकाशन के मेरुदंड श्री मनमोहन शर्मा जी के प्रति आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने अल्पकाल म इस पुस्तक को प्रकाशित कराया। आशा है कि 'मन की बात' को सुधी पाठकों का स्नेह और सहयोग निरंतर मिलता रहेगा।
अनन्त शुभकामनाओं के साथ आपका ही -