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Hum toh bhai vishpaayee hain हम तो भाई विषपायी हैं
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Hum toh bhai vishpaayee hain हम तो भाई विषपायी हैं

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
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About this issue

बिहार विभूति आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की रचनाओं पर आधृत कई पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं और अभी कई प्रकाशनाधीन हैं। उनकी कविताओं के संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं हिन्दी में "हम हों केवल भारतवासी, भोजपुरी में “छलके छलके नयनियाँ के कोर"। एक और कविता संग्रह अब आपके हाथों में है "हम तो भाई विषपायी हैं"। आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की रचनाएँ शाश्वत मूल्यों की रचनाएँ हैं चाहे ललित निबंध हो, चाहे कविता हो, चाहे पत्र लेखन हो, चाहे समीक्षा हो । 2010 में आचार्य जी का अचानक निधन हो गया और लगता था कि उनकी कालजयी रचनाएँ उनके जाने के बाद नष्ट-विनष्ट हो जाएंगी। और ये भी तो नहीं मालूम था कि उनकी रचनाएँ कहाँ पर हैं, किस अवस्था में हैं, किस स्थिति में हैं? उनसे इस पर कुछ बात भी नहीं हो पायी थी। अचानक जो हम सब को छोड़ कर चले गए। जब उनकी रचनाओं की हम खोज कर रहे थे तब ही मुझे उनकी लिखी कई कविताएँ भी प्राप्त हुईं। कविताओं के दो संग्रह तो निकल ही चुके हैं। अब ये तीसरा संग्रह है जिसमें सत्ताईस हिन्दी कविताएँ शामिल की गयीं हैं। इस संग्रह में भी तरह तरह की कविताएँ हैं कुछ प्रकृति पर हैं, कुछ देशभक्ति पर हैं, कुछ ईश वंदना पर हैं, तो कुछ दर्शन से संबंधित । एक कविता तो हिन्दी की महिमा पर ही ही है- "हिन्दी है जन जन की भाषा, हिन्दी जन मन बानी हिन्दी है भारत की ऊर्जा, इसकी अमर कहानी"

About Hum toh bhai vishpaayee hain हम तो भाई विषपायी हैं

बिहार विभूति आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की रचनाओं पर आधृत कई पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं और अभी कई प्रकाशनाधीन हैं। उनकी कविताओं के संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं हिन्दी में "हम हों केवल भारतवासी, भोजपुरी में “छलके छलके नयनियाँ के कोर"। एक और कविता संग्रह अब आपके हाथों में है "हम तो भाई विषपायी हैं"। आचार्य रवीन्द्रनाथ ओझा की रचनाएँ शाश्वत मूल्यों की रचनाएँ हैं चाहे ललित निबंध हो, चाहे कविता हो, चाहे पत्र लेखन हो, चाहे समीक्षा हो । 2010 में आचार्य जी का अचानक निधन हो गया और लगता था कि उनकी कालजयी रचनाएँ उनके जाने के बाद नष्ट-विनष्ट हो जाएंगी। और ये भी तो नहीं मालूम था कि उनकी रचनाएँ कहाँ पर हैं, किस अवस्था में हैं, किस स्थिति में हैं? उनसे इस पर कुछ बात भी नहीं हो पायी थी। अचानक जो हम सब को छोड़ कर चले गए। जब उनकी रचनाओं की हम खोज कर रहे थे तब ही मुझे उनकी लिखी कई कविताएँ भी प्राप्त हुईं। कविताओं के दो संग्रह तो निकल ही चुके हैं। अब ये तीसरा संग्रह है जिसमें सत्ताईस हिन्दी कविताएँ शामिल की गयीं हैं। इस संग्रह में भी तरह तरह की कविताएँ हैं कुछ प्रकृति पर हैं, कुछ देशभक्ति पर हैं, कुछ ईश वंदना पर हैं, तो कुछ दर्शन से संबंधित । एक कविता तो हिन्दी की महिमा पर ही ही है- "हिन्दी है जन जन की भाषा, हिन्दी जन मन बानी हिन्दी है भारत की ऊर्जा, इसकी अमर कहानी"