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Dr Prabhat Kaushik Shikshaprayagi
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Dr Prabhat Kaushik Shikshaprayagi

By: ANURADHA PRAKASHAN (??????? ??????? ?????? )
175.00

Single Issue

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Single Issue

About Dr Prabhat Kaushik Shikshaprayagi

https://www.amazon.in/dp/B0B1VD44YY?ref=myi_title_dp “शिक्षाप्रयोगी” पुस्तक द्वारा मैं विश्वविख्यात शिक्षाविद् एवं सामाजिक चिन्तक डॉ– प्रभात कौशिक के व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व के साथ–साथ उनके शैक्षिक दर्शन, शैक्षिक प्रणाली, शैक्षिक संस्थान एवं छात्र–शिक्षक–अभिभावक प्रबंधन के क्षेत्र में उनके द्वारा किए जा रहे प्रयोगों पर प्रकाश डालना चाहती हूँ । यह पुस्तक शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े एवं भविष्य में जुड़ने वाले शिक्षकों, अभिभावकों तथा छात्रों के लिए एक अनूठी पहल और प्रयोग के तौर तरीकों को प्रतिबिम्बित करेगी । डॉ– कौशिक द्वारा किए गए प्रयोगों द्वारा यह साबित हो चुका है कि यदि जिंदगी को उन्नत बनाना है तो जोखिमों से डर कर बैठने या भाग्य को दोष देने के बजाय चुनौतियों का डट कर सामना करने से सफलता निश्चित है । उनकी अपनी जिंदगी इस बात का पुख्ता सबूत है कि मनुष्य किसी भी उम्र में अपनी जिन्दगी को हीरे की तरह तराश सकता है । डॉ. कौशिक के जीवन दर्शन का प्रतिबिम्ब उनके शिक्षा दर्शन पर भी साफ तौर पर देखा जा सकता है । मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं विधाता है इस सोच को प्रतिपादित करने वाला दर्शन ही डॉ. कौशिक का असली शिक्षा दर्शन है । कैसे डॉ. प्रभात कौशिक साधारण व्यक्ति से जाने माने शिक्षाविद् एवं समाज सुधारक बने ? यह प्रश्न हर उस व्यक्ति के जहन में प्रवेश करता है जो उनसे विज्ञ हैं । ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तित्व में कुछ तो ऐसा अकल्पनीय होता है जो जनसामान्य से भिन्न है । ऐसा क्या किया ? कौन से तरीके उन्होंने अपनाए ? कौन से जोखिम उठाए ? क्या नवीन किया ? नवीनीकरण एवं उनके प्रयोगों से कौन लाभान्वित हुए ? इसके लिए आवश्यक है कि हम उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानें और उनके कौशल के आवश्यक बिंदुओं को पहचान एवं अपनाकर उन्नति करें । निम्नलिखित कदाचित उपयुक्त लगता है : अत: मेरा विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से मैं अपने सभी पाठकों तक एक ऐसी शख्सियत की जीवन शिल्पकारिता एवं शिक्षा शिल्पकारिता का उल्लेख पहुँचाने की कोशिश कर रही हूँ जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए निरंतर नवीन खोज करते हुए उन्हें लागू करते हैं । प्रस्तुत पुस्तक में बाल मनोविज्ञान से लेकर बच्चों की शिक्षा की पहली सीढ़ी से सफलता एवं लक्ष्य प्राप्ति तक के समस्त तथ्यों को दर्शाया गया है । अत% शून्य से शीर्ष तक की प्रत्येक सीढ़ी को दर्शाने का प्रयत्न किया है । प्राचार्य – अध्यापक–अभिभावक का सहसंबंध विद्यार्थियों की सफलता का आधार कैसे है, किस तरह विद्यार्थी को फेल होने जैसी मानसिक हत्या से बचाया जा सकता है इन सब तथ्यों को विश्लेषणात्मक एवं व्याख्यात्मक विधि से प्रस्तुत किया गया है साथ ही कुछ उदाहरणों एवं प्रश्नोत्तरों के माध्यम से शैली को रुचिकर बनाने का प्रयत्न किया गया है । डॉ– कौशिक कहते हैं– “दीप प्रज्ज्वलित करो उसमें आग मत लगाओ” अत: मुझे आशा ही नहीं अपितु दृढविश्वास है कि इस पुस्तक की विषयवस्तु अवश्य ही पाठकों के लिए लाभकारी एवं अनुकरणीय होगी । सार रूप में शिक्षाप्रयोगी के लिए अनायास ही ये शब्द निकलते हैं – अज्ञान मिटाता ज्ञान जगाता सत्पथ पर ले जाता है । अज्ञात दिशा में भटके जन का पथ आलोकित होता है॥ करुणा शर्मा