परिवार वह सुदृढ़ किला है, जहां बच्चे, बड़े, बूढ़ों सभी को सुरक्षा मिलती है। इस पुस्तक में लेखिका ने यह बताने का प्रयास किया है कि किस प्रकार रिश्तों में सामंजस्य बनाए रखकर जीवन में खुशहाली लाई जा सकती है। मानव पैदा होते ही रिश्तों के धागों में बंध जाता है, जिसकी डोर आजीवन उसके साथ बंधी रहती है। वर्तमान समय में न्यूक्लियर फैमिली यानि एकल परिवार का चलन तेजी बढ़ रहा है, जिसकी वजह से हमारी संयुक्त परिवार की परम्परा का तेजी से ह्रास हो रहा है और साथ ही मानवीय मूल्यों में आई गिरावट को आसानी से महसूस किया जा सकता है। इस नई परम्परा का सबसे अधिक असर हमारी भावी पीढ़ी पर पड़ा है, उनका कोमल मन भी दादा-दादी, नाना-नानी के स्नेह एवं वात्सल्य के आवरण से दूर आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल हो गया है। संयुक्त परिवार का ताना-बाना उनके लिए बेमानी हो गया है। बिखरते रिश्तों को समेटने में यह पुस्तक संजीवनी का काम करेगी। इस पुस्तक में दिये लेखों के माध्यम से पाठक प्रेम, माधुर्य, आत्मीयता एवं सौहार्द के भावों से ओत-प्रोत होंगे। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञों के साक्षात्कार पर आधारित लेख निश्चित रूप से पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होंगे। बाल विकास के साथ-साथ यह पुस्तक जीवन जीने की कला से रूबरू करायेगी। इस पुस्तक की विषयवस्तु हर आयु वर्ग के पाठकों का ध्यानाकर्षित करेगी।