"इसी पुस्तक से :- भुवनेश्वरी- ""हे महादेव, मैंने एक भोले - भाले बालक की इच्छा की थी । पर आपने तो ये साक्षात हनुमान भेज दिया । कहीं ये आपका कोई गण तो नहीं भगवान ?"" बिले - ""फिल, मां देथना, ...मै छन्याछि जलूल बनूंगा।"" भुवनेश्वरी - ""अरे बेटा, तू कैसी - कैसी बातें करता है ?"" नरेंद्र - ""नाग ?, मुझे कुछ नहीं पता । मै तो ध्यान में बैठा शिवजी को देख रहा था । उन्होंने ही किसी नाग को मुझे देखने के लिए यहां भेजा होगा ।"" अध्यापक - "" नरेंद्र , मैंने तुम्हें नहीं, दूसरे छात्रों को खड़े होने के लिए कहा था । तुम क्यों खड़े हो गए ? "" नरेंद्र - ""गुरु जी, बात तो मैं ही कर रहा था । ये दोनों तो मेरी बात सुन रहे थे । इसलिए सजा मुझे मिलनी चाहिए ।"" नरेंद्र -""बाबा, आपने ईश्वर को देखा है ?"" रामकृष्ण -"" हां बेटा, ऐसे ही देखा है, जैसे मैं तुम्हे देख रहा हूं ।"" महेंद्र -"" मां, .. भैया, आप कल सुबह से कह रहे हैं, आज खाना आ जाएगा, आज खाना आ जाएगा । मैं कहां जाऊं? किससे कहूं?"" गणिका लुकमानिया (मैना बाई) से, स्वामी विवेकानन्द -""मां, आप खड़े तो होइए । मुझे किसी से घृणा करने का अधिकार नहीं ।"" स्वामी विवेकानन्द -"" मेरे देश के नौजवानों, हाथ में पुस्तक लेकर बगीचों में घूमने से कुछ नहीं होगा।""... ""मैं विदेशियों को बताना चाहता हूं कि सब- कुछ खोने के बाद भी, हम एक अमूल्य परंपरा के मालिक हैं ।""... ""जिस वर्ष यहूदियों का पवित्र मंदिर, रोमन जाति के अत्याचारों से धूल में मिला दिया गया, उस वर्ष कुछ अभिजात यहूदी आश्रय लेने दक्षिण भारत में आए और हमारी जाति ने उन्हें आश्रय दिया ।"" ...""मेरी मातृभूमि ! अहा ! क्या खुशबू, क्या शांति, क्या संतुष्टि है अपनी मिट्टी में । प्रणाम, मेरी मातृभूमि प्रणाम । माता, तेरी ही शक्ति ने तो मुझे विदेशी हृदयों पर विजय दिलाई ।"""