बीते कुछ वर्षों में बदलते मीडिया परिदृश्य ने संवाद को सहज और सुगम तो बनाया ही लेकिन भाषा के बदलते स्वरुप को लेकर एक बहस और चिंतन के वातावरण का निर्माण भी किया। अधिकांशत: इस चिंतन के दायरे मीडियाकर्मियों और मीडिया प्रशिक्षुकों के बीच तक ही सीमित रहे। लेकिन मीडिया का भाषाई विमर्श केवल मीडिया प्रशिक्षक और शोधार्थी करें तब तो निश्चित ही पक्षपात की संभावना प्रबल होगी। इस पुस्तक के प्रकाशन का उद्देश्य मीडिया शिक्षकों के साथ ही भाषा के शिक्षकों के विमर्श को भी सामने लाना था और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र द्वारा “वर्तमान मीडिया की भाषाई प्रवृत्तियां” जैसे अति प्रासंगिक विषय पर रिफ्रेशर कोर्स के आयोजन ने ही इस पुस्तक के प्रकाशन की प्रेरणा दी। इस तरह के सुअवसर कम ही मिलते हैं जहां देश के विभिन्न प्रांत के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से आंमंत्रित विषय विशेषज्ञ एवं प्राध्यापक एक ही मंच पर अपने विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हों। इस पुस्तक के प्रकाशन का उद्देश्य किसी निष्कर्ष पर पहुंचना नहीं है अपितु मीडिया के भाषाई विमर्श के विभिन्न पहलुओं को पाठकों के समक्ष रखना है ताकि भविष्य में मीडिया की भाषा पर सार्थक संवाद स्थापित किया जा सके।