Khilafe-e-Dastor
Khilafe-e-Dastor

Khilafe-e-Dastor

  • Tue Jul 20, 2021
  • Price : 75.00
  • Rigi Publication
  • Language - Hindi
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"एक सवाल मेरे सामने आया कि मैं अपने बारे में और अपनी सोच के बारे में ज्यादा लिखती हूं। एकदम ख्याल आया कि लिखना और किसको कहते हैं? मैं अपनी लिखित के बारे में कुछ और सोचने ही लगी थी फिर खयाल आया कि जीवन हमेशा अपने आप से षुरू होता हुआ, धीरे-धीरे बाहरी दुनिया की ओर निकलता है, अपने आसपास के बर्ताव को देखता, जीता, झेलता, अपने अंदर मुड़ जाता। कुछ भरे हुए मन कागजों पर सब उकेर देते और वह बहुत लोगों के दिलों की जुबान बन जाते जो कुछ ना कह सकते वह अंदर ही अंदर घुटन का शिकार हो जाते। यकीन मानो जब वह अपनी घुटन को किसी शब्दों में पीरोए हुए देखते वह बहुत सुकून हासिल करते। इतिहास में जो भी लिखा गया उसका सफर एक इंसान से ही शुरू हुआ। हमारे गुरु पैगंबर भी मैं से चले और सब में जा मिले। कितने लेखक आए और चले गए पर जिंदा कुछ ही बचे। वही आज जिंदा है जिन्होंने साहित्य को कुछ अलग दिया, जिन्होंने अपने सुरों में साहित्य को ढाला, जिन्होंने नामवर हस्तियों को अपनी कलाकृतियों में ढाला। शिव आज भी हर कण कण में धड़कता है, वह गीतकारों की आवाज में भी धड़कता। एक साहित्य के साथ कितना कुछ जुड़ जाता है। ड्रामा, मूवी, गीत, संगीत और भी कितना कुछ। सभी विधियों को सिर्फ साहित्य ही आपस में जोड़ता है। जितना भी दर्द लिखा जाता है वह अपने अंदर से ही निकलता है । सवै-जीवनीओ ने इतिहास को कई दिशाएं दी। अपनी लेखनी में जो अपनी बात नहीं कर सकता, अपनी सोच को सवाल नहीं कर सकता, अपने नजरिए को दो-फाड़ नहीं कर सकता वह पूरा सच भी नहीं लिख सकता। बंद कमरे और अनुभवों के बिना साहित्य चंद दिनों का ही मेहमान होता है। -ज्योति बावा"