"बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत उमापत वसंत गाँव में जन्में एवं वर्तमान में रेल डिब्बा कारखाना, कपूरथला में वरिष्ठ अनुभाग अभियंता के पद पर कार्यरत श्री प्रवीण कुमार के परिवार में चार भाईयों के अलावा पिता - श्री गंगाधर झा , माता - श्रीमती शशि देवी, पत्नी - श्रीमती सुषमा झा एवं पुत्र - प्रियांशु झा हैं। अति व्यस्त ड्यूटी के बावजूद इन्हें हिन्दी लेखन के लिए भारतीय रेल द्वारा कई पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र प्राप्त हो चुके हैं । इनके कविता संग्रह - 'कागज के फूल' में सन्देश और मनोरंजन के अलावा कमजोर लोगों का शोषण, प्रतिभाओं की उपेक्षा और मजबूत अपराधतंत्र के सामने प्रजातन्त्र की विवशता जैसे गम्भीर मुद्दों को सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कमजोर लोगों की आपबीती भी है। इसके अलावा भी इनमें दिमाग के दो अलग - अलग भाग - 'प्रत्युत्पन्नमति' और 'सोच ' को उदाहरण के साथ समझाया गया है ताकि युगों - युगों में कभी - कभार जन्म लेने वाला कोई अद्भुत सोच वाला मानव जब प्रत्युत्पन्नमति से हीन यहाँ आये तो पग - पग पर तिरस्कृत और कस्तूरी मृग की तरह किसी की मक्कारी का शिकार न हो , क्योंकि दुनियादारी के कार्यों में बेहद कमजोर (शव जैसा) होते हुए भी इस अद्भुत मानव द्वारा विशेष मनोवैज्ञानिक तरीके से किसी भी स्थिति में ( शिव जैसा ) अद्भुत अविष्कारों की असीम सम्भावनायें हैं । इनका मानना है कि बहुत बातें जो हम विभिन्न वजहों से नहीं कह पाते हैं , कविता के माध्यम से बिना लक्ष्मण रेखा के उल्लंघन के प्रभावी ढंग से कह सकते हैं । भाषा सम्बन्धी त्रुटियों को माफ़ करते हुए कृपया अपनी प्रतिक्रियाएं नीचे दिए गए मोबाइल नम्बर या ईमेल पर जरूर भेजिएगा : मोबाइल नम्बर: 9501447241 / ईमेल : jha02101969@gmail.com"