पा...पा...!! इस शब्द को ठीक से बोल भी नहीं पाया कि मेरे पिता जी की मृत्यु हो गई। यह वह पल था जब हमारे परिवार को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी। लेकिन ईश्वर को यह मंजूर नहीं था। माँ ने बहुत संघर्ष कर हमें पाला तथा अच्छी शिक्षा दी तथा पिता जी के कर्तव्यों को भी भली-भाँति निभाया और हमें महसूस नहीं होने दिया लेकिन कहते हैं न कि माता-पिता दोनों का होना बच्चों के लिए जरूरी होता है क्योंकि माँ की ममता और पिता के कर्तव्य को शायद ही कोई पूरा कर सके। जिस प्रकार एक घर की छत हमें हवा, धूप, पानी आदि से सुरक्षा प्रदान करती है ठीक उसी प्रकार एक पिता भी अपने बच्चों के लिए उसका छत होता है वह मेरे लिए केवल एक पिता ही नहीं बल्कि मेरे आदर्श भी हैं क्योंकि उनमें वह सारी योगताएं थी जो एक श्रेष्ठ पिता में होती हैं उनकी लिखी हुई रचनाओं को पढ़ उस पर अमल कर आज मैं इस मुकाम तक पहुँच पाया कि अपनी बाँतों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ। उनसे अच्छा मार्गदर्शक कोई हो ही नहीं सकता, आज भी पिता जी के सारे गुणों को अपनाने और उस पर अमल करने की भरपूर कोशिश करता हूँ। मैंने जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी लड़ना सीखा क्योंकि मैंने अपने पिता जी को अपना आदर्श बनाया। जीवन रूपी पथ पर कैसी-कैसी बाधाएँ आती हैं यह बात वही समझ सकते हैं जिनके पिता इस दुनिया में नहीं हैं। मैं इस पुस्तक के माध्यम से आप सभी पाठकों तक यही संदेश पहुंचाना चाहता हूँ कि एक कवि अपनी वेदना को जब शब्दों में अच्छी प्रकार से सजाता और संवारता है और अपने जीवन की वेदना कागज के पन्नों पर उकेरता है तो फिर उसकी हार्दिक इच्छा होती है कि पाठक उसकी रचनाओं को दिल से पढे़। मेरी भी दिली तमन्ना है कि आप उनकी रचना को पहले पढ़िए फिर समझिए, और तब कुछ कहिए क्योंकि बिन कहे तो आप रह ही नहीं सकते। आप से मुझे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह रचना पसंद ही नहीं आएगी बल्कि दिल को छू लेगी। इस आशा के साथ एक पिता का पुत्र और आपका स्नेह पात्र. लिखते रहना ही कवि की जिंदगी है कुछ ना लिखना मृत्यु समान होता है