यहाँ सभी की ज़िन्दगी एक सफ़र होती है. आदमी आता है और चला जाता है. लेकिन इस आने-जाने के सफ़र में प्रत्येक इंसान को बहुत से खट्टे-मीठे अनुभवों से दो-चार होना पड़ता है. जब तक उसके पास सबकुछ है तब तक सब उसके अपने होने का बराबर एहसास दिलाते हैं. लेकिन एक वक़्त उसके पास कुछ नहीं होता तो वही अपने उसे अपना मानने से इनकार कर देते हैं. लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने ना होते हुए भी अपनों से ज्यादा कर जाते हैं. असल में यही अपने होते हैं. ऐसे लोगों का मिलना इस ज़िन्दगी के सफ़र को बेहतर से कहीं अधिक बेहतर बना देता है. क़िताब के लेखक धीरज वर्मा पेशे से अध्यापक हैं और जन्मस्थली गुरुग्राम, हरियाणा में रहते हैं. श्री वर्मा ने इस क़िताब की कहानी को कितनी शिद्दत से महसूस कर लिखा है, यह आप पढने के बाद ही जान पाएँगे.