प्रयासरत एक प्रक्रिया है, जो हमारे द्वारा किये जा रहे प्रयत्न की निरंतरता को दर्शाती है | वो प्रक्रिया जो हम किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए ज़रूरी मानते हैं | इस बीच स्वयं पर भी शंका होना स्वाभाविक हो जाता है। और फिर पीछे मुड़कर देखना और यह सोचना की क्या जो कर रहा हूँ वह सही है? क्या इसी सोच को लेकर चला था? क्या मेरी कल की विफलताएं आगे भी बनी रहेंगी, या आगे कुछ श्रेयस्कर करने की ऊर्जा बची है। जिसके लिए चलना आरंभ किया था। अब हाथ में सफलता भी है और प्रतिष्ठा भी। लेकिन यहाँ रुक जाना प्रयासरत होना नहीं है। क्योंकि 'लक्ष्य' कुछ और है। जो स्थायी हो और कुछ दिन की प्रशंसा से कहीं अधिक बढ़कर हो। जो भौतिक नहीं आत्मिक हो।