उसकी पहली छुअन का वो सिहरा देने वाला एहसास और उसको महसूस करने की बेपनाह चाहत। फिर जब उसको छुआ और महसूस किया तब की वो अज़ीब लेकिन दिल को अनियंत्रित कर देने वाली स्थिति। प्यार-मोहब्बत के वो यादगार पल और उनमें बसी मीठी-खट्टी यादें। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोहब्बत मासूम ही तो होती है। इस प्यार-मोहब्बत में मासूमियत ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। क्या किसी चालाक-धूर्त की चालाकी-धूर्तता से मोहब्बत हुई है? कभी आपको अपने दुश्मन की क्रूरता से मोहब्बत हुई है? आप कहेंगे कि इनसे कौन मोहब्बत करेगा। किसी राह चलते की मासूमियत पे आपको रश्क़ हो सकता है, इश्क़ हो सकता है। -- युवा हिन्दी लेखक शैख़ हिलाल नॉएडा की एक प्राइवेट फर्म में एकाउंट्स मैनेजर तौर पर काम करते हैं। हिलाल को शायरी और व्यंग लिखने का बहुत बड़ा शौक है। उनकी अधिकतर कहानियाँ निजी जीवन में हुए अनुभवों से प्रेरित होती हैं। हिलाल अपने जीवन में काफी छोटी उम्र से ही जिन घटनाओं को घटित होते हुए देखते या अख़बारों के माध्यम से पढते तो उनके इर्द-गिर्द एक कहानी बुनने लगते। लोगों का रहन-सहन, आपस में बोल-चाल, मेट्रो-ट्रैन में लोग किस तरह व्यवहार करते हैं, ये सब हिलाल की कहानियों का हिस्सा बन जाता है। ऑफिस में लोगों की किस तरह की गतिविधियाँ रहती हैं, बड़े शहर के लोग किस तरह बात करते हैं, छोटे शहरों या कस्बों या गांवों में लोग किस तरह बात करते हैं, ये सब हिलाल अपने ज़हन रखते हैं।