जब सम्पूर्ण नाटक एक ही स्थान पर घटित होता है, तो नाटककार के लिए सबसे बड़ी चुनौती संवाद नहीं, अपितु पात्रों के उन उद्देश्यों को खोज निकालना होता है जो उद्देश्य पात्र को उस स्थान पर घसीट कर ले आते हैं जहाँ नाटक घट रहा है। अगर दर्शकवर्ग को ज़रा भी शंका हो जाती है कि पात्र को जबरदस्ती इस स्थान पर लाया गया है, तो नाटककार को अपने नाटक के प्रस्तुतीकरण में सफल नहीं माना जा सकता है। जैसे-जैसे नाटक की अवधि बढ़ती जाती है, वैसे वैसे यह चुनौती भी बढ़ती जाती है। न केवल उस समय मंच पर मौजूद पात्रों के अस्तित्व के औचित्य का प्रश्न उठता है, बल्कि आने वाले नए पात्रों के सामयिक प्रवेश से भी नाटककार को झूझना पड़ता है। ऐसे में लम्बी अवधि तक दर्शकों या पाठकों को बांधे रखने के लिए, नाटक की मोटे तने-रुपी मुख्य विषय-वस्तु पर, पात्रों और लघु-प्रसंगों की डालों के सहारे उनको संतुष्टि की चरम सीमा पर ले जाना होता है। वर्तमान नाटक-उपन्यास में यही कोशिश की गई है। नाटक की आम विधाओं से हटकर, रहस्य और रोमांच के सहारे पाठकों का मनोरंजन करने की कोशिश की गई है। सम्पूर्ण नाटक एक ही स्थान पर घटित होता है, हालांकि समय की अविरल धारा में नहीं, बल्कि तकरीबन एक हफ्ते की अवधि के दौरान। --- वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं हिन्दी लेखक डॉ. भारत खुशालानी (Ph.D) का जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। इन्होंने कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय, अमेरिका (California University, America) से वर्ष 2004 में डॉक्टरेट (Ph.D) कि डिग्री प्राप्त की है। फ़िलहाल डॉ. भारत सहालकार (कंसल्टेंट) के तौर पर कार्य करते हैं। इनकी प्रकाशित महत्वपूर्ण कृतियों में 52 शोधकार्य और रिपोर्ट शामिल हैं जो अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों लेख, कविताएँ एवं कहानियाँ हो चुकी हैं। इनके द्वारा लिखी प्रकाशित 8 किताबें: भारत में प्रकाशित : 1). कोरोनावायरस 2). कोरोनावायरस को जो हिन्दुस्तान लेकर आया 3). परीक्षण ; अमेरिका में प्रकाशित : 4). समतल बवंडर 5). उपग्रह 6). भवरों के चित्र 7). लॉस एंजेलेस जलवायु ; कैनेडा में प्रकाशित : 8). सौर्य मंडल के पत्थर हैं।