Mahasamar Ke Maun Prashna
Mahasamar Ke Maun Prashna

Mahasamar Ke Maun Prashna

This is an e-magazine. Download App & Read offline on any device.

Preview

हर महासमर कुछ मौन प्रश्न छोड़ जाता है। तात्कालिक समाज और इतिहास भी बस विजय को स्मरण रखता है। मौन प्रश्नों पर मौन साध लेना ही इतिहासकारों को भी सुयश देता है। महाभारत युद्ध में बर्बरीक, अभिमन्यु और घटोत्कच जैसे महावीरों की निर्मम हत्या अनेक प्रश्न छोड़ जाती है। पांचाली का अपने पति धर्मराज युद्धिष्ठिर द्वारा द्युत में दाँव लगाना और हार जाना, फिर धर्मवीरों से भरी सभा में उसके चीरहरण का प्रयास किये जाने पर भी, सबका मौन साध लेना अनेक प्रश्नों को जन्म देता है। यह महाकाव्य इन्हीं घटनाओं के उत्तर तलाशने का विनम्र प्रयास है। तात्कालिक भारत के धर्माभिमानी महावीरों से भरी सभा का, एक स्त्री और अपनी कुलवधू के अपमान पर मौन धारण कर लेना सामाजिक अवमुल्यन की पराकाष्ठा है। यह काव्य इसी संवेदनहीनता पर चोट करती है, हर एक से प्रश्न पूछती है।इन सबसे पहले लवकुश अपनी माता सीता के साथ हुये अन्याय के लिये भी हम सबसे और अपने सम्राट से कुछ कठिन प्रश्न पूछते दिखेंगे। निर्मल हृदय से पूछे गये विनम्र प्रश्नों का काव्य संकलन है यह महाकाव्य- "महासमर के मौन प्रश्न"।"अर्वाचीन धनुर्धर एकलव्य" के बाद नरेन्द्र द्वारा रचित यह महाकाव्य हमें कठिन पर अत्यन्त विनम्र प्रश्नों के संसार में ले जाती है, भारतीयता के उत्कृष्ट मापदंडों के दर्शन कराती है।