एक दरख़्त अपने आग़ोश में बहुत सी शाखाएँ लिए रहता है। जिनमें नन्ही कलियाँ एवं हरे-पीले पत्ते भी होते हैं। इन सब की अपनी कहानी होती है। अपना मन और अपना ही ख़ुश रहने का तरीक़ा होता है। इसी तरह इंसानी मन भी एक दरख़्त की भांति अपने छोटे-छोटे कोनों में इस तरह की शाखाएँ रखता है जो हरे पत्ते व कलियों के रूप में हर छोटी-बड़ी याद को अपने में समेटे हुए रहती हैं। कुछ इन्हीं बातों को अपने में समेटे हुए ये काव्य संग्रह आपको सभी को उसी दुनिया में लिए जायेगा, जिस दुनिया में लेखिका ने 'दरख़्त-ए-एहसास' को लिखा था। - गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में जन्मी युवा हिन्दी लेखिका शताक्षी शर्मा 'आराधना' श्री रमेश कुमार शर्मा - श्रीमती अंजली शर्मा की पुत्री है। शताक्षी शर्मा ने अपने हिन्दी प्रेम की वजह से हिन्दी भाषा से बी.ए किया है। लेखन में इन्हें गीत, ग़ज़ल, लघु कथा, कविता, निबन्ध और भजन लिखना पसंद है। शताक्षी शर्मा 11 वर्ष की आयु से ही राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत चिन्तन, कविता लेखन एवं काव्य पाठ करती चली आ रहीं है। सुधी साहित्यकारों के सानिध्य सुख से सृजनात्मक ऊर्जा की प्राप्ति उनका निरंतर चलता आ रहा है। जीवन में सादगी, सरलता और कर्तव्य पालन का प्रण कर चुकी हैं। शताक्षी जी बताती हैं कि इन्हें श्रीहरि में गहरा विश्वास है और चिन्तन-मनन व इससे ओतप्रोत मन के भावों को लिखने के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं।