अभिनव कुछ समय पहले ही बाहर से आया है और लत्तिका के दफ्तर में ही कार्यरत है। रहने का स्थान न मिलने के कारण वह कुछ दिनों के लिए लत्तिका के यहाँ पेइंग गेस्ट है। बातचीत से यह साफ जाहिर था कि इस नए व्यक्ति की उपस्थिति माता जी के लिए बवाल बनी हुई थी। पर हम हैरान थे लत्तिका की सोच पर। एक तो दो कमरों का छोटा सा क्वार्टर तीन बच्चों और दो औरतोंके लिए ही मुश्किल से पूरा था फिर तीसरा व्यक्ति और वह भी आदमी। वैâसे एक अन्जान व्यक्ति के साथ सामन्जस्य स्थापित किया जा सकता है। और वो भी तब जब घर में और कोई आदमी हो ही न। फिर आस-पड़ौस वाले भी क्या कहते होंगे। यह ठीक है कि हर बात पर हम समाज की परवाह करेंगे तो जीना मुश्किल है लेकिन कुछ ऐसे विषय होते हैं जहाँ सोचना पड़ता है नहीं तो इज्जत के साथ जीना मुश्किल हो जाता है। लेकिन हमने इस विषय में दखलंदाजी देना उचित नहीं समझा। रिश्ते तभी तक ठीक निभते हैं जब तक सीमा में रहे। जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप रिश्तों में दिवारे खड़ी कर देता है। माताजी का हाल-चाल पता कर हम अपने घर आ गए। पिताजी से भी इस बारे में कोई जिक्र नहीं किया। लेकिन अब पहले की तरह बेझिझक लत्तिका जी के घर जाना मुश्किल लगता था। जब भी कभी जाना पड़ा उस अजनबी व्यक्ति अभिनव की उपस्थिति एक पेंइगगेस्ट से ज्यादा लगने लगी थी। इसलिए मैं कोशिश करती लत्तिका जी से मैं बाहर ही मिल लिया करूँ हलांकि अब मुलाकातों में लम्बा अन्तराल आने लगा था।