भारत का अध्यात्म, ध्यान और योग इस सृष्टि को भारत कि अनुपम भेंट हैं । भारत के अध्यात्म ने मनुष्य के अहंकार, अशांत मन, क्लेश एवं समस्त प्रकार की मानसिक एवं आचरणगत विकृतियों पर विजय पाने का प्रयत्न किया हे । आज संपूर्ण विश्व में फैली हिंसा और अराजकता के निदान का उपाय यदि कही हो सकता हे , तो वह मात्र भारत का आध्यात्म, ध्यान और योग ही हैं।
भारतीय सभ्यता और संस्कृति के निरंतर विकास की प्रक्रिया में यह कहा जा सकता है कि यदि भारत को संपूर्ण ब्रह्मांड को ज्ञान, ध्यान और अध्यात्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देनी है, तो आज भारत को पुनः बुद्ध, महावीर, नानक, कबीर, पतंजलि, वाल्मिकी, रैदास जैसे संतों की आवश्यकता होगी और ऐसे आध्यात्मिक व्यक्ति एक-दो की संख्या में हों, तो इससे भी काम चलने वाला नहीं है। हजारों, लाखों की संख्या में बुद्ध और कबीर चाहिए होंगे। भारत की विडंबना यही रही है कि विशाल मानव संसाधन और जनसंख्या के बोझ के बीच में विभिन्न युगों में कतिपय महापुरुषों का आगमन होता ही रहा है, किंतु यह संख्या सदैव ही अपर्याप्त रही है। करोड़ों मनुष्यों के बीच में एक-दो महान आत्माओं के आने से देश और समाज की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता। लाखों आत्माओं का आह्वान करना होगा। उनके आध्यात्मिक और बौद्धिक जागरण का आंदोलन छेड़ना होगा।