सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के विषय में चर्चा करते ही सर्वप्रथम पेशवा नानासाहब का चेहरा आंखों के मध्य घूमने लगता है । पेशवा नानासाहब ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम सूत्रधार हैं । मातृभूमि की स्वाधीनता के लिये वह जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे । असफलता के बावजूद उन्होंने भारतीय स्वाधीनता के इतिहास में जिस अध्याय की शुरूआत की वह अपने आप में अविस्मरणीय है । उस समय उनके द्वारा प्रज्जवलित ज्योति के भले ही बुझा दिया गया पर इसका अर्थ यह नही था कि वह सर्वदा के लिये बुझ गयी । बल्कि इस ज्योति के आंच ने ही भारत को स्वतंत्रता प्रदान की । इस पुस्तक में लेखक ने नानासाहब के जीवन चरित की अधिकतम सामग्री को संक्षिप्त रूप में देने का सराहनीय प्रयास किया है ।