निठल्लू का मन पढ़ाई में नहीं लगता, स्वप्न निठल्लू ने बुने, कड़ी मेहनत की कुछ बनकर दूसरों का सेवक बना? प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है, देश के संविधान में शासन करने वाले के लिए शैक्षिक योग्यता का प्रावधान नहीं है। कभी-कभी अयोग्य व्यक्ति के हाथ में देश की बागडोर हो देश के भविष्य का क्या होगा? दैनिक जीवन में अक्सर ऐसी घटनायें सरेआम हो रही हैं जहाँ किसी का ध्यान नहीं जाता है। निठल्लू के साथ जो भी हुआ यदि ऐसा ही होता रहा शायद अंधेर नगरी जैसी स्थिति होगी। परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। यहाँ भी परिवर्तन की अपेक्षा की ओर संकेत है, जिसका पात्र निठल्लू है संविधान में संशोधन हो। दूसरा निठल्लू न बन सके। यह उपन्यास ऐसे नायक के माध्यम से जनसंदेश-जनजागरण-जनमानस की चेतना को आन्दोलित करेगा ऐसा मेरा विश्वास है।