आज भारतीय शिक्षा प्रणाली को नए सिरे से भारतीय आवश्यकताओं के अनुकूल गढ़ने की आवश्यकता है, ताकि नवीन भारतीय पीढ़ी को भारतीय मूल्यों से युक्त तथा नागरिक दायित्व बोध के गुणों से परिपूर्ण एक जिम्मेदार राष्ट्रीय व्यक्तित्व के रूप में विकसित किया जा सके। घिसे-पिटे पाठ्यक्रमों में राष्ट्रीय चिंतन और सामाजिक समस्याओं के प्रति स्पंदन का अभाव दिखाई पड़ता है। यही कारण है कि स्वतंत्रता के बाद के सात दशकों में भारतीय विश्वविद्यालय आज भी राष्ट्र नकारात्मक से उबर नहीं पाए हैं। अनेक विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुत्सित राजनीति की जा रही है।
कुल मिलाकर देश की शिक्षा व्यवस्था तथा शैक्षणिक वातावरण अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझ रही है। यह एक स्थापित तथ्य है कि जो देश शिक्षा को लेकर अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट नहीं कर पाते हैं, वे आने वाले वर्षों में शोध, नवाचार और समेकित विकास के मानकों पर बहुत पीछे रह जाते हैं। आज विश्व के विकसित और समृद्ध देश हैं, वे सभी अपनी विशिष्ट प्रकार की मौलिक शिक्षा प्रणाली और प्रतिभा विकास कार्यक्रमों के कारण ही जाने-पहचाने और माने जाते हैं। इन विकसित देशों के आधार पर ही भारत को भी अपनी शिक्षा प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन लाने की आवश्यकता है, ताकि भारतीय शिक्षा मैकॉले के घिसे-पिटे गैर भारतीय दर्शन से न केवल मुक्त हो सके, वरन देश के मानव संसाधन को संपूर्ण रूप से राष्ट्र निर्माण के कार्य में भी लगाया जा सके।