गुरु अंगद देव की वाणी में विचित्र प्रभाव था। वह सीधे-सादे शब्दों में अपने अनुयायियों को ईश्वर भत्तिफ़ का उपदेश देते थे। यही नहीं वह अपने अनुयायियों को यह भी बताया करते थे कि उन्हें प्रभु की पूजा-आराधना करते हुए अपना सांसारिक जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए। वह कहा करते थे-मनुष्य जो दूसरों को देता है, वही उसे प्राप्त होता है। उसे अपने कर्मों के द्वारा ही स्वर्ग या नरक में स्थान मिलता है। गुरु अंगद देव की दृष्टि में कर्म ही महत्त्वपूर्ण था। अपने विचारों के कारण, वह बहुत जल्द लोक-प्रिय हो गए। दूर-दूर से लोग उनके उपदेश सुनने ऽडूर पहुंचने लगे। गुरु नानक की भांति उन्होंने भी हिन्दू समाज में फैली कुरीतियों और धर्म के नाम पर फैले हुए पाखंड का विरोध किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को इन पाखंडों से दूर रह कर सीधा-सादा, स्नेह और भाई-चारे से भरा जीवन बिताने का उपदेश दिया।