परमहंस योगानंद की यह आत्मकथा, पाठकों और योग के जिज्ञासुओं को संतों, योगियों, विज्ञान और चमत्कार, मृत्यु एवं पुनर्जन्म, मोक्ष व बंधन, की एक ऐसी अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाती है, जिससे पाठक अभिभूत हो जाता है। परमहंस योगानंद के सान्निध्य में ‘क्रिया योग’ की प्रक्रियाओं के शिक्षण से दीक्षित उनके अनुयायियों को बाहरी एवं आंतरिक तनाव, भ्रांत धारणाओं, घृणा, भय और असुरक्षा से विदीर्ण जगत में आंतरिक शांति, आनंद, विवेक, प्रेम और परिपूर्णता को पाने का ज्ञान प्राप्त हुआ।