हिन्दी साहित्य को एक नई दिशा देने में प्रख्यात साहित्यकार विष्णु प्रभाकर की भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। देशभक्ति, राष्ट्रीयता, सामाजिक सरोकारों से जुड़ी उनकी प्रत्येक रचनाओं में कोई-न-कोई संदेश छुपा रहता है। 21 जून, 1912 को मीरनपुर में दुर्गा प्रसाद एवं महादेवी जी की संतान के रूप में जन्मे विष्णु जी, हिन्दी साहित्याकाश में एक नक्षत्र बनकर चमकेगी, यह कल्पना उनके मातापिता ने भी कभी नहीं की होगी । उन्होंने विभिन्न विषयों पर आधारित लघु कहानियां, उपन्यास, नाटक और कहानियों की रचना की है ।
परन्तु उन्हें सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई 'कथाशिल्पी शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के जीवन पर आधारित आवारा मसीहा' उपन्यास से । 19 वर्षों के अथक परिश्रम से लिखी गई उनकी इस महान कृति को पाठको ने हाथों-हाथ लिया । साहित्य अकादमी पुरस्कार ने उन्हें सम्मानित भी किया । भारत सरकार ने भी हिन्दी साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें ' पद्म भूषण ' तथा 'महापंडित राहुल साकृत्यायन पुरस्कार' से अलकृत किया है।
प्रस्तुत 21 श्रेष्ठ कहानियां' उनकी खूबसूरत रचनाओं का सग्रह है । ' जरूरत ', ' इसानियत ', ' पुल टूटने से पहले ' ' सच! मैं सुंदर हूं ' और भीगा हुआ यथार्थ ' ऐसी ही कुछ कहानियां है जो सीधे पाठको के दिल में उतर जाती हैं। उनकी कहानियां न सिर्फ मन को आनंद से सराबोर करती है बल्कि प्रत्येक कहानी का मर्म, संवेदनशील, भाव में छिपा संदेश हमें दृढ़ जीवनआस्था के प्रेरित भी करता है।