तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान मराठा सरदार थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य, हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के लिए सूबेदार की भूमिका निभाते थे। तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे. उन्होंने १६७० ई. में सिंहगढ़ की लड़ाई में अपनी महती भूमिका निभाई। वैसे तो छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना मे कई सरदार थे, परंतु छत्ररपती शिवाजी महाराज ने वीर तानाजी मालुसरे को कोढणा आक्रमण के लिए चुना। कोढणा "स्वराज्य" में शामिल हो गया लेकिन तानाजी मारे गए थे। छत्रपति शिवाजी ने जब यह ख़बर सुनी तो वो बोल पड़े "गढ़ तो जीता, लेकिन मेरा "सिंह" नहीं रहा। यह पुस्तक तानाजी मालुसरे के जीवन संघर्ष को पाठकों के सामने प्रस्तुत करती है।