विवेकानन्द द्वारा भारत की गरिमा को पुनः जगाने का प्रयास मात्र राजनैतिक दासत्व की समाप्ति के लिए नहीं था । दासत्व की जो हीन भावना हमारे संस्कार में घुल-मिल गयी है उससे भी त्राण पाने का मार्ग उन्होंने बताया । विवेकानन्द बड़े स्वप्नद्रष्टा थे । उन्होंने एक नये समाज की कल्पना की थी; ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं रहे । उन्होंने वेदांत के सिद्धांतों को इसी रूप में रखा । अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत को जो आधार विवेकानन्द ने दिया, उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूंढ़ा जा सके ।
विवेकानन्द का सबसे शक्तिशाली संदेश तो उनका जीवन था । चालीसवां जन्म दिवस देखने के पूर्व ही संसार छोड़ जाने वाले उस युवा संन्यासी ने इतने अल्पकाल में पूरे राष्ट्र में एक नयी जान फूंक दी और एक ऐसा सामाजिक दर्शन प्रतिपादित किया, जो आज भी सार्थक है ।