रवीन्द्र नाथ एक गीत है, रंग है और है एक असमाप्त कहानी। बांग्ला में लिखने पर भी वे किसी प्रांत और भाषा के रचनाकार नहीं है, बल्कि समय की चिंता में मनुष्य को केंद्र में रखकर विचार करने वाले विचारक भी हैं। “वसुधैव कुटुम्बकम” उनके लिए नारा नहीं आदर्श था। केवल ‘गीताजंलि’ से यह भ्रम भी हुआ कि वे केवल भक्त हैं, जबकि ऐसा है नहीं। दरअसल, स्विहमैन की तरह उन्होंने ‘आत्मसाक्ष्य’ से ही अपनी रचना धार्मिक से ही अपनी रचना धार्मिता को जोड़े रखा। इसीलिए वे मानते रहे कविताकी दुनिया में दृष्टा ही स्रष्टा है। रवीन्द्र कवि के अलावा एक चित्रकार तथा कथाकार भी थे। एक ऐसा कथाकार जो अपने आस पास के कथालोक चुनता है, बुनता है, सिर्फ इसलिए नहीं कि घनीभूत पीड़ा की आवृत्ति करे या उसे ही अनावृत करे बल्कि उस कथालोक में वह आदमी के अंतिम जंतव्य की तलाश भी करता है। डायमंड पॉकेट बुक्स ने रविन्द्र कविता, कहानियों तथा उपन्यासों को मूल बांग्ला से हिंदी में अनुवाद कराकर प्रकाशित कियाहै। इनकी सूची इस प्रकार हैं- कविता – गीतांजलि उपन्यास -1, नाव दुर्घटना