प्रेमचंद हिंदी-साहित्य के एक ऐसे कथाकार का नाम है, जिनसे सामान्य-से-सामान्य साक्षर व्यक्ति भी परिचित है । प्रेमचंद झोपड़ी के राजा थे । इसीलिए उनके साहित्य की पहुँच झोपड़ी से लेकर राजमहल तक है । झोपड़ी और राजमहल के बीच का रास्ता भी उन्होंने उड़कर पार नहीं किया, अर्थात् झोपड़ी से लेकर राजमहल तक जो कुछ भी प्रेमचंद के दृष्टि-पथ में आया, वह उनके साहित्य का विषय बन गया । कैसा होगा वह साहित्यकार, जो अपने जीवन-पथ में सब कुछ को स्वीकारता चला गया, अपनाता चला गया । किसी को भी उससे उपेक्षा नहीं मिली, चाहे वह राह का पत्थर था या मंदिर का देवता । प्रेमचंद की दृष्टि में सब समान थे । वे दीन-दुखियों के पक्षधर, कृषकों के मित्र, अन्याय के विरोधी, शोषण के शत्रु और साहित्य के देवता थे ।