महात्मा गांधी ने भारत देश को आजाद कराया। ‘नोट में छपे गांधी’ के मर्म में गांधी की दुःखी आत्मा भारत की दयनीय स्थिति की ओर इशारा करती है। वर्तमान सन्दर्भ में व्यंग्य की विधा में कथा के माध्यम से यह कहानी, जूझते हुए एक ऐसे इंसान की स्थिति को बयां करती है जिस पर आत्ममंथन की आवश्यकता है। मानवता का दंश समाज के ऊपर भारी है, जहां चिन्तन दिशा सतत उस पवित्र नदी की तलाश करती है जहां पवित्र गंगा में उसका दोष धुल सके। इस निर्मलता के लिए फिर से एक अवतरण है ‘नोट में गांधी’ मानवता दम तोड़ रही है। कथानक की दिव्य दृष्टि जिज्ञासा को शान्त करती है, साथ ही प्रेरणादायी होती है। कथानक का उद्देश्य समाज को आने वाले समय में विकल्प देना होता है। ध्येय की दृष्टि से समाज के प्रति पैनी नजर भी होती है, निश्चित रूप से कथाकार का उद्देश्य काल को परिणाम देना है। यह लक्ष्य भी सुखदाई होता है। पाठकों को कहानी के प्रति जिज्ञासु बनाकर उसे दीर्घकालिक बनाना है जिससे उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न बुनकर समाज एवं राष्ट्र के भविष्य को संवारने में अपना योगदान दे सकें।