प्रेमचंद भारत की नई राष्ट्रीय और जनवादी चेतना के प्रतिनिधि साहित्यकार थे । अपने युग और समाज का जो यथार्थ चित्रण उन्होंने किया, वह अद्वितीय है । जब उन्होंने लिखना शुरू किया था, तब संसार पर पहले महायुद्ध के बादल मंडरा रहे थे । जब मौत ने उनके हाथ से कलम छीन ली, तब दूसरे महायुद्ध की तैयारियां हो रही थी । इस बीच विश्व-मानव-संस्कृति में बहुत से परिवर्तन हुए । इन परिवर्तनों से हिन्दुस्तान भी प्रभावित हुआ और उसने उन परिवर्तनों में सहायता भी की । विराट मानव-संस्कृति की धारा में भारतीय जन-संस्कृति की गंगा ने जो कुछ दिया, उसके प्रमाण प्रेमचंद के उपन्यास और उनकी सैकड़ों कहानियां हैं ।
'मनोरमा' प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है । रानी मनोरमा के माध्यम से प्रेमचंद ने उस समय की नारी व्यथा को इस उपन्यास में पिरोने का प्रयास किया है । चक्रधर का विवाह हो या निर्मला का वियोग इस उपन्यास की सभी घटनाएं तात्कालिक सामाजिक व्यवस्था की देन हैं ।