‘माँ’ दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द है। ‘माँ’ शब्द का उच्चारण करते समय हमारी आंखों के समक्ष एक ऐसी ममतामयी और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति उभरती है, जिसकी आँखों में निश्छल और निष्कपट प्रेम है। यही वह शब्द है, जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता। इसके आगे सारे अर्थ चुक जाते हैं। इसकी महिमा अनन्त है,जिसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है, सिर्फ़ ज्ञानेन्द्रिय द्वारा महसूस किया जा सकता है। कोई भी स्त्री तभी पूर्णता प्राप्त करती है, जब वह माँ बनती है। माँ न बनने की पीड़ा उस बांझ स्त्री से पूछिए, जो निरंतर माँ बनने के लिए छटपटाती रहती है और वह भीतर-ही-भीतर घुटती रहती है। अपने अस्तित्त्व की अपूर्णता का बोध उसे प्रतिपल कचोटता रहता है।