ग़ज़ल कविता की वह विधा है जिससे मोहब्बत करते हुए उम्र का आइना नहीं देखा जाता। ग़ज़ल रेशम के द्वारा काँटों को फूल बनाने का ऐसा मुश्किल काम है जिसके लिए जवान ख़ून और आँखों की तेज़ रौशनी की ज़रूरत पड़ती है। डॉ. प्रवीण शुक्ल नये ख़ून, नई शब्दावली और नये लहज़े के कवि हैं। उन्होंने अपने शे’रों में जिंदगी के खट्ट्टे-मीठे अनुभवों को शामिल करके ख़ूबसूरत ग़ज़लों के रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी ग़ज़लों में जिंदगी जीती हुई दिखाई देती है। अपने समय और समाज से हटकर कोई भी शायर बड़़ी शायरी नहीं कर सकता। डॉ. प्रवीण शुक्ल की शायरी पूरी तरह ज़मीन से जुड़ी हुई है और हमारी शायरी की रिवायतों पर खरी उतरती है।
घर, समाज और जीवन की कड़वी सच्चाइयों को सलीके से अपनी ग़ज़लों की फूलमाला में पिरोने के लिए मैं डॉ. प्रवीण शुक्ल को मुबारकबाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि वह ग़ज़ल के ख़ज़ाने में अपने शे’रों से और भी इज़ाफा करेंगे।