लॉर्ड लिनलिथगो 1936 से 1943 तक भारत के ब्रिटिश वायसराय थे । उन्होंने सन् 1942 में लगे कुम्भ-मेले का भ्रमण करना चाहा । उन्होंने महामना पं. मदनमोहन मालवीय ( 1861-1946) के साथ हवाई जहाज में बैठकर ऊपर से मेले का निरीक्षण किया । मेले में जनसमूह का जो सागर उमड़ा था, उसे देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने मालवीय जी से प्रश्न किया- मालवीय जी इस स्थान पर एकत्रित होने के लिए जो निमंत्रण भेजे गए होंगे । उसमें काफी धनराशि लगी होगी । आपका अंदाजा क्या है कि इसके संगठनकर्ताओं को कितना खर्च करना पड़ा होगा । मालवीय जी ने हँसकर जवाब दिया- सिर्फ दो पैसे । लॉर्ड लिनलिथगो ने कहा कि पंडित जी, क्या आप मजाक तो नहीं कर रहे हैं? मालवीय जी ने अपनी जेब से एक पंचांग निकाला और कहा कि इसकी कीमत दो पैसे है । इसी से लोग जानकारी प्राप्त कर लेते हैं कि कौन-सा खास दिन और समय मेले के लिए पवित्र होगा और स्नान के लिए यहाँ अपने आप चले आते हैं । प्रत्येक आगंतुक को व्यक्तिगत निमंत्रण भेजकर यहाँ बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती ।