कहां कूटनीति के दांवपेंच, दुराव, छिपाव और अलगाव, कहां अंतरतम के गूढ़तम भावों को प्रकट करने की काव्य कला। कहां विदेश सेवा की सजावट, बनावट और दिखावट, कहां नरेन्द्र जैन का निश्चल, निष्कपट और निर्व्याज मन। विदेश सेवा ने उनकी अनुभूति को विविधता और वैश्विक विस्तार दिया है। विदेश सेवा के इस उदीयमान कवि—साहित्यकार राजनयिक के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।
—पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी
प्रस्तावना—लेखक की पुस्तक ट्टउन्मुक्त गगन’ में नेपाल की पृष्ठभूमि में लिखे राजदूत जैन के काव्य—संग्रह में प्रतिबिम्बित है नेपाल के प्रति भारत की परम्परागत मैत्री, सौहार्द्र, सहयोग और स्नेह की भावना। उसमें पर्वतराज हिमालय की और उससे सतत प्रवाहित नदियों की गौरव—गाथा है। वस्तुतः पुस्तक नेपाल—भारत मैत्री में एक साहित्यिक योगदान है।
—पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी. नरसिंहराव