एक चौराहे पर खड़ी हूं, कौन-सा रास्ता चुनूं समझ नहीं पा रही हूं। चारों ओर घना अंधेरा है, अंधेरे में अपना कदम किस तरफ बढ़ाऊं...। डर रही हूं, घबरा रही हूं। मेरा दिमाग सांय-सांय कर रहा है, जब कोई रास्ता नहीं सूझता तो मैं घुटनों के बल बैठ जाती हूं और भगवान को याद करती हूं। मैंने तो सर्वगुण सम्पन्न पति की कामना की थी, भगवान कंफ्रयूज़ तो नहीं हो गए थे?
‘गरिमा’ एक धोखे से की गई शादी की अनोखी कहानी है। इस घटना ने नायिका को जिन्दगी के एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा करती है जहां से उसे कष्टपूर्ण और अंतहीन रास्ता दिखता है...। उसकी शादी एक एयरफोर्स ऑफिसर से होती है मगर शादी के बाद जो सच्चाई सामने आती है, वह अकल्पनीय और कदम-कदम पर चौंकाने वाली है। इन परिस्थितियों में रिश्तेदार और अपने लोग प्रभावित न हों इसका ध्यान रखते हुए और एक महिला की गरिमा बनाये रखते हुए नायिका ने एक-एक कदम बढ़ाया है, उसका भावनात्मक आंकलन है यह उपन्यास। ‘गरिमा’ किसी के लिए सबक, किसी के लिए सतर्कता और किसी के लिए मार्गदर्शक हो सकती है।