सृष्टि ने जितना संसार हमारे बाहर रचा है उतना ही हमारे भीतर भी रचा बसा है, भले ही हम उसे जाने या न जाने। सृष्टि ने हमें इन दो संसारों के बीच रख कर एक अदम्य जिज्ञासा भी दी है जो हम इनसे परिचित होने का उपक्रम स्वयं शुरू करें। बाहर के संसार को जानने की प्रक्रिया विज्ञान से जुड़ी है, भौतिकी, रसायन, जीव, वनस्पति, भूगर्भ, खगोल और गणित इन सबसे संबंधित विज्ञान की शाखाएं है, जिन्हें औपचारिक रूप से हमें आंख खुलने के साथ ही सिखाया जाने लगता है। भीतर के संसार को जानना किंचित कठिन है। मन और आत्मा से जुड़ा बंधा और इस सबके बीच एक ध्रुव सत्य की तरह परमात्मा भी है। इस सबको जो संसार समेटे है, उसे जानने की कोई औपचारिक परिपाटी नहीं है लेकिन एक विधा है जरूर जो इस दिशा में आदिकाल से अपना काम कर रही है। वह विधा है अध्यात्म। विज्ञान हमें विकास की ओर ले जाता है लेकिन सुख, शांति और आनंद की कुंजी केवल अध्यात्म के पास है और यही अंतिम सच है।