किसी सच को सहारे की जरूरत नहीं पड़ती। सच बिखेरने की कला हर एक में नहीं होती क्योंकि जमीं पर रहकर उड़ान भरने की हिम्मत भी किसी में नहीं होती। एक साधारण-सा सच, सादगी का रूप लेकर सबके सामने उभरकर और सक्षम होकर असामान्य और अद्भुत-सा आकार लेता है। यह साकारात्मक रूप लेकर सबको दिखाई जाती है और जीत भी जाती है। जीतनी भी चाहिये क्योंकि सच, सच को ही प्रत्यक्ष करता है और जीतता भी है। जीत किसी को आकर्षित नहीं करती बल्कि खुद-ब-खुद आकर्षण का केन्द्र भी बनती है। खुशी का वातावरण खुद-ब-खुद महक जाता है
अद्भुत तो लगेगा ही सच से जीतने का अंजाम और परिणाम सबको देखना जो होता है। सच मानिये सच सबल है, प्रबल है, ताकत है, शक्ति का प्रतीक है और निडर होने का एहसास है। जो खुद ही से अलग अनुभव और सहानुभूति, सन्तुष्टि से खुद को सन्तुष्ट करने की क्षमता रखता है।