रवीन्द्रनाथ त्यागी का हास्य-व्यंग्य संसार बहुत व्यापक और विस्तृत है। जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ त्यागीजी की पैनी दृष्टि ने वहाँ की विद्रूपताओं, विसंगतियों, उलझनों और समस्याओं को निरावृत्त न किया हो। व्यक्ति, परिवार, समाज, राजनीति, राजनेता, लोकतन्त्र, समाजवाद, प्रशासन, भ्रष्टाचार, कदाचार, नौकरशाही, दफ़्तर, क्लर्क, फाइल, धर्म एवं उसके आडम्बर, शिक्षा के भ्रष्टाचार, न्यायालय, निर्वाचन- प्रणाली, पुलिस, कानून, अस्पताल, निर्धन और धनवान, स्त्री-मुक्ति एवं स्त्री चेतना, हिन्दी भाषा, साहित्यकार और प्रकाशक, कीड़े-पशु-पौधे आदि अनेक विषय उनके हास्य-व्यंग्य के आधार बनते हैं, जिनमें लेखक की सामाजिक प्रतीति तथा प्रतिबद्धता निहित है।