'सुरमई शामें’ मूलतः एक प्रेम कविता है, लेकिन कृति में समाहित अन्य रचनाओं में जीवन, प्रकृति एवं प्रेम के झंझावातों एवं इनके रास्तों में अपने वाली दुश्वारियों का भी चित्रण है और ये दुश्वारियाँ अंत में सुखद अनुभूतियों में तब्दील हो जाती हैं। दीप्ति जी ने यह चित्रण पद्य रूप में भी किया है और गद्य की शक्ल में भी। यहीं उनकी बहुमुखी प्रतिभा झलकती है, क्योंकि ऐसे साहित्यकार कम ही गुजरे हैं, जो पद्य के साथ ही गद्य लेखन में भी उतनी ही महारत रखते हों। पद्य का सृजन करने वाला साहित्यकार जब कभी गद्य लेखन करता है तो उस गद्य में भी कविता की प्रवाहित होती लय का दर्शन सहज ही किया जा सकता है। ऐसा ही ‘सुरमई शामें’ की कविताओं व कहानियों में भी हुआ है। इस कृति को दो खण्डों ‘अ’ एवं ‘ब’ में विभाजित किया गया है और दोनों ही खण्डों में कविता एवं कहानी का खूबसूरत तानाबाना समाहित है। खण्ड ‘अ’ की कविताओं में ‘तुम मैं और ठहरे क्षण’, ‘स्लेटी मौसम’, ‘साँझ के पंखों पर’, ‘मौसम और गीत’ तथा कहानी ‘प्रेम प्रसून’ अन्तरमन को गहराई से प्रभावित करती है। इसी खण्ड में ‘सुरमई शामें’ कविता भी है, जिसके बारे में कहने की आवश्यकता नहीं कि अत्यंत प्रभावशाली होने के कारण ही इसे कृति के शीर्षक का रूप दिया गया है। कविताओं के शीर्षक बताते हैं कि इनमें मौलिकता का समावेश करते हुये लीक से हटकर कलम चलायी गयी है।