इस उपन्यास की नायिका सवि की जीवन यात्रा अकेली नहीं है, वह उन तमाम सफल स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती है, जिनके उजास व्यक्तित्व के भीतर अनगिनत बंद अँधेरी सुरंगें हैं। किसी भी एक सुरंग को खोल कर घुस जाइए - जीवन में मिलने वाले विश्वासघातों से रोंगटे खड़े हो जाएँगे, बचपन से ही मिलने वाले कड़वे बोल कान में पिघले शीशे से पड़ते जान पड़ेंगे, अपने ही लोगों के वार से शरीर का अंग-अंग छलनी सा मिलेगा। पर, सारी अँधेरी सुरंगों को बंद कर वह दौड़ती ही रही है उजालों के पीछे। प्रकाशित ही करती रही है अपनी अदम्य जिजीविषा।
इस उपन्यास का ताना-बाना जीती-जागती ज़िन्दगी को आधार बना कर बुना गया है। अपने बचपन की सहेली के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को शब्दों में ढालना, पीड़ा के घनीभूत क्षणों को निष्पक्ष भाव से साक्षी बनकर चित्रित करना अत्यंत मुश्किल रहा होगा। ज़ाहिर तौर पर इस जीवनीपरक उपन्यास की सबसे बड़ी चुनौती इसका शिल्प पक्ष है, क्योंकि समूचा उपन्यास अन्य पुरुष में लिखा गया है